गन्ने की खेती भारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में की जाती है लेकिन महाराष्ट्र में बड़े पैमान पर किसान इसकी खेती करते हैं. पश्चिमी महाराष्ट्र खासतौर पर गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है. महाराष्ट्र में गन्ने की खेती करने वाले किसानों को 'अमीर किसान' की श्रेणी में रखा जाता है क्योंकि कहते हैं कि उन्हें अपनी फसल का अच्छा खासा दाम हासिल होता है. पुणे, सतारा, सांगली, सोलापुर और कोल्हापुर जैसे जिले में किसान गन्ना उगाते हैं. जबकि अहिल्यानगर, छत्रपति संभाजीनगर, जालना जैसे बाकी जिलों में भी इस नकदी फसल की खेती की जाती है. महाराष्ट्र में कई सहकारी चीनी मिलें हैं जहां पर हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. अब गन्ने की खेती में AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग हो रहा है जो इसके बदलाव का भी गवाह बन रहा है.
बारामती एग्रीकल्चर डेवलपमेंट बोर्ड (एडीटी) ने गन्ने की खेती को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए एआई का पहला प्रयोग भारत में किया है. आपको बता दें कि इस ट्रस्ट की शुरुआत पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार और उनके भाई प्रतापराव पवार की तरफ से की गई थी. ट्रस्ट के साथ मिलकर माइक्रोसॉफ्ट और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कम लागत में ज्यादा उपज देने वाली गन्ने की खेती विकसित की. बारामती भारत के उन जिलों में शामिल है जहां पर गन्ने की सबसे ज्यादा खेती होती है. एआई का प्रयोग यहां करीब 1,000 किसानों के खेतों में गन्ने पर किया गया था. एआई के प्रयोग से गन्ने के उत्पादन में 30 से 40 फीसदी का इजाफा देखा गया.
यह भी पढ़ें-खेती कर किसान का बेटा बना ISRO का चेयरमैन, धोती और नंगे पैर जाना पड़ता था स्कूल
किसानों की मानें तो एआई के प्रयोग से लागत में 20 से 40 प्रतिशत तक की कमी आई और 30 फीसदी तक पानी की बचत हुई है. किसानों का कहना है कि प्रयोग के तहत उन्हें बताया गया कि कैसे AI की मदद से गन्ने का उत्पादन प्रति फसल 160 टन से ज्यादा तक बढ़ाया जा सकता है. किसानों के लिए इस प्रयोग की शुरुआत तीन साल पहले की गई थी. मार्च 2024 से 1,000 किसानों को इस प्रयोग का हिस्सा बनाया गया था. कहा जा रहा है कि जल्द ही महाराष्ट्र के 50,000 किसानों के खेतों पर इस प्रोजेक्ट को शुरू किया जाएगा.
महाराष्ट्र सरकार ने इस बार के बजट में करीब 500 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया है जिससे किसानों को AI में सब्सिडी मिलेगी. ऐसे किसान जो पिछले कई सालों से पारंपरिक तौर पर खेती करते आ रहे थे अब एआई टेक्नोलॉजी से परिचित हो गए हैं. एआई आधारित एप पर दी गई जानकारियों का प्रयोग किसान गन्ने की खेती के लिए कर रहे हैं. किसानों की मानें तो पहले उन्हें करीब चार घंटे तक पानी देना पड़ता था और खेत में जाकर फसल में बीमारी का पता लगता था. इसके लिए बड़ी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता था लेकिन अब एआई तकनीक का इस्तेमाल से हर अपडेट मोबाइल पर मिल रहा है. इन्हीं अपडेट के अनुसार किसान गन्ने की खेती कर रहे हैं.
यह भी पढ़ें-पुणे में होने जा रही है पहली इंटरनेशनल एग्री हैकाथॉन, जानें इसके बारे में सबकुछ
कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत गन्ना उत्पादन में नंबर वन देश है, लेकिन कुल उत्पादकता के लिहाज से ब्राजील और चिली से काफी पीछे है. भारत के विभिन्न राज्यों में महाराष्ट्र की गन्ना उत्पादकता तमिलनाडु से भी कम है. साल 2024-25 की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में करीब 14.20 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती हो रही है, जिससे कुल अपेक्षित उत्पादन 1100.00 लाख मीट्रिक टन हो सकता है और 30,000 से 35,000 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल होगा.
जिस मिट्टी में गन्ना बोया जाना है एआई की मदद से उसकी पूरी जांच तुरंत की जा सकेगी. इससे समय की बचत होगी और मिट्टी की उर्वरता, जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम जैसे अहम बातों की विस्तृत जानकारी मिल सकेगी. खेत में मिट्टी का नमूना किस जगह से लिया जाना है इसका भी पता चल सकेगा. इसलिए सैटेलाइट से मिली मिट्टी उर्वरता जांच रिपोर्ट और लैब में ओरिजिनल रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर गन्ने की असल खुराक डाली जानी चाहिए. साथ ही जिस किस्म की पौध लगाई जाएगी उसके बीज एक खास तरीके यानी एआई तकनीक का प्रयोग करके उगाकर तैयार किए जाते हैं. ऐसे में न सिर्फ पौध मजबूत और स्वस्थ होगी बल्कि 21 दिन में तैयार होने वाली पौध भी उपलब्ध होगी.
इसके अलावा किसान पानी की बचत कर सकेंगे, उर्वरकों को सही प्रयोग हो सकेगा, केमिकल फर्टिलाइजर्स के बुरे प्रभावों के बारे में जानकारी हासिल हो सकेगी और एआई की मदद से मौसम में होने वाले बदलावों की जानकारी भी किसानों को रीयल टाइम बेसिस पर मिल सकेगी.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today