इस समय देश लगभग सभी राज्यों में रबी फसलों की कटाई शुरू हो गई है. रबी फसल के बाद खरीफ की खेती की जाती है. वहीं, खरीफ सीजन की खेती जून के महीने में शुरू हो जाती है, लेकिन इन दोनों सीजन के बीच काफी गैप रहता है, जिसमें कई किसान अपनी खेतों को खाली छोड़ देते हैं. ऐसे किसान अपने खाली पड़े खेत का उपयोग कर सकते हैं. गेहूं से लेकर सरसों तक की कटाई तकरीबन समाप्ति की ओर है. इसके बाद एक महीने से ज्यादा समय तक खेत खाली रहता है, जिसके बाद खरीफ फसलों की बुआई की जाती है.
ऐसे में किसान खाली पड़े खेत में तिल की खेती कर सकते हैं. जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सकता है. आइए जानते हैं तिल की खेती कैसे करते हैं और खेती में किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
तिल की खेती के लिए दोमट बलुई मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. इसमें तिल काफी अच्छे से ग्रो करता है. मिट्टी के चयन के बाद खेत को रोटावेटर से जुताई कर लें. फिर दो से तीन बार कल्टीवेटर से खेत की जुताई करें. इसके बाद बीज की बुआई कर दें. बीज की बुआई में ध्यान रखें कि यह एक पंक्ति में हो. वहीं, पौधों के बीच 12 से 15 सेमी की दूरी होनी चाहिए. किसी भी फसल की उपज कैसी होगी, यह काफी हद तक उसकी सिंचाई पर निर्भर करता है. ऐसें में बुआई के 20 दिनों के बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. इसके ठीक 7 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई भी कर देनी चाहिए.
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तिल की फसल को बचाने के लिए कीट रोग प्रबंधन के लिए बुवाई से पहले सड़ी हुई खाद और नीम की खली 250 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. इसके बाद मित्र फफूंद ट्राइकोडर्मा विरिडी से 4 ग्राम प्रति की दर से बीज उपचार करके बुवाई करें. मिट्टी में इस फफूंद को 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद बीज के साथ मिलाकर डालें. खड़ी फसल में कीट नियंत्रण के लिए 30-40 दिनों और 45-55 दिनों में नीम आधारित कीटनाशक का भी छिड़काव करें.
जब तील के 75 फीसदी पत्तियां और तने पीले हो जाए, तब समझना चाहिए कि फसल पक कर तैयार हो गई है. वहीं कटाई में लगभग 80 से 95 दिन लगते हैं. जल्दी कटाई तिल के बीज को पतला और बारीक रखकर उनकी उपज को कम कर देती है. उपज आम तौर पर प्रति हेक्टेयर 6 से 7 क्विंटल होती है.
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