देश में पहली बार सरसों की खेती का रकबा 100 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच गया है. किसानों ने पिछले साल के मुकाबले इस बार 2.27 लाख हेक्टेयर ज्यादा एरिया में सरसों की बुवाई की है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या किसानों की इस दरियादिली पर सरकार भी उनके लिए कुछ करेगी या फिर पिछले साल की तरह ही उन्हें फिर निराशा हाथ लगेगी. खाद्य तेलों में सरसों का योगदान करीब 28 फीसदी है. ऐसे में इसकी खेती का बढ़ाना भारत को खाद्य तेलों की निर्भरता की ओर ले जाना है. सरसों की खेती का रकबा किसी सरकारी मिशन से नहीं बढ़ा है, बल्कि 2020 से 2022 तक किसानों को मिले अच्छे भाव की वजह से यह सफलता मिली है.
हालांकि, 2023 ने सरसों किसानों को काफी निराश किया, क्योंकि दाम एमएसपी से काफी कम मिला था. फिर भी किसानों ने इसका रकबा नहीं घटाया. वो इस साल अभी बाजार का रुख देखेंगे. ऐसे में अगर इस बार दाम नहीं बढ़ा तो अगले साल रकबा घट भी सकता है. साल 2024 की शुरुआत भी किसानों को दाम के मामले में निराश कर रहा है. राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम (e-NAM) के अनुसार देश के सबसे बड़े सरसों उत्पादक राजस्थान में एमएसपी से कम दाम पर ही सरसों की बिक्री हो रही है.
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रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए सरसों की एमएसपी 5650 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई है. सरकार ने पिछले साल के मुकाबले 200 रुपये क्विंटल की वृद्धि की है. जबकि पिछले साल 400 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी. यानी इस साल सरकार ने सरसों की एमएसपी में बहुत कम वृद्धि की है. उससे पहले 2021-22 में 225 रुपये क्विंटल की वृद्धि हुई थी.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि दलहन की तरह तिलहन फसलों की भी 100 फीसदी खरीद का एलान करना चाहिए. अभी कुल उत्पादन का 25 फीसदी खरीदने का ही प्रावधान है, वो भी सरकार नहीं खरीदती. पिछले साल 32 लाख टन की बजाय देश में एमएसपी पर सिर्फ 10 लाख 20 हजार मीट्रिक टन सरसों ही खरीदा गया. बाकी किसानों ने औने-पौने दाम पर व्यापारियों को फसल बेची. निजी क्षेत्र ने एमएसपी से 1000 रुपये क्विंटल के कम दाम पर फसलों की खरीद की.
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