
देखते ही देखते केन्द्र सरकार ने मछली पालन के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की पीएम मत्स्य संपदा योजना लागू कर दी है. पहली बार में तो जल्द ही कोई भी नहीं समझ पाया कि सी फूड पर सरकार की इतनी मेहरबानी क्यों? लेकिन जब लोगों ने जानने के लिए आंकड़े खंगाले तो जो डाटा सामने आया वो काफी चौंकाने वाला था. लेकिन ये डाटा मछली नहीं झींगा से जुड़ा था. वही झींगा जिसे लेकर देश के घरेलू बाजार में तमाम तरह की अफवाहें फैलाई जाती हैं, लेकिन अमेरिका और चीन जैसे बड़े देश उसी भारतीय झींगा के लिए उतावले रहते हैं. ये बात हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2021-22 तक बीते 10 साल में झींगा का एक्सपोर्ट पांच लाख टन से ज्यादा बढ़ा है. जिस झींगा का उत्पादन एक लाख टन से शुरू हुआ तो वो आज 9 से 10 लाख टन के आंकड़े पर पहुंच गया है.
जबकि फ्रोजन फिश का एक्सपोर्ट 10 साल में साढ़े तीन लाख टन से सवा दो लाख टन पर आ गया है. फ्राइड फिश का एक्सपोर्ट भी कम हुआ है. जबकि ड्राई फिश का एक्सपोर्ट राहत देने वाला है. लेकिन झींगा के आंकड़े को किसी ने भी छूने की कोशिश तक नहीं की है. जानकारों की मानें तो साल 2022-23 में कुल 64 हजार करोड़ रुपये का सी फूड एक्सपोर्ट हुआ है. जिसमे से अकेले करीब 40 से 42 हजार करोड़ रुपये की इनकम झींगा से हुई है. इस दौरान कुल 1.7 मिलियन टन सी फूड एक्सपोर्ट किया गया था. लेकिन अफसोस की आज उसी झींगा की हालत खराब है. बीते तीन साल में झींगा के रेट 20 से 25 फीसद तक गिर गए हैं. घरेलू ही नहीं इंटरनेशनल मार्केट में भी झींगा को कई मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है. झींगा एक्सपर्ट की मानें तो हर साल झींगा फार्मर को करीब 10 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.
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मत्स्य और पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों पर जाएं तो साल 2003-04 से लेकर 2013-14 तक फ्रोजन झींगा का एक्सपोर्ट 72 हजार करोड़ रुपये का हुआ था. जबकि साल 2014-15 से लेकर 2021-22 तक फ्रोजन झींगा का 2.39 लाख करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट हो चुका है. पीएम नरेद्र मोदी भी कई जगह अपने भाषणों में सीफूड एक्सपोर्ट बढ़ाने और उसे हर संभव मदद की बात कह चुके हैं. जापान, चीन, अमेरिका, यूरोपिय संघ और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश भारतीय झींगा के बड़े शौकीन है. सबसे ज्यादा भी यही देश भारतीय झींगा खरीदते हैं. जबकि भारत, इक्वाडोर और वियतनाम झींगा एक्सपोर्ट करने वालों की फेहरिस्त में सबसे टॉप पर हैं.
झींगा हैचरी एसोसिएशन के प्रेसीडेंट रवि येलांका ने किसान तक को बताया कि कोरोना के बाद से इंटरनेशनल मार्केट में वित्तीय संकट छाया हुआ है. इसके अलावा रूस-यूक्रेन की लड़ाई का भी बड़ा असर देखने को मिल रहा है. इसके अलावा इक्वाडोर झींगा का भारत से ज्यादा उत्पादन कर रहा है. हम नौ लाख टन कर रहे हैं तो वो 12 लाख टन कर रहा है. बाजार में माल ज्यादा आने की वजह से भी रेट गिर रहे हैं. इसके अलावा घरेलू स्तर पर झींगा फार्मर को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जैसे बिजली के रेट पर कोई राहत नहीं मिलती है. कई दूसरे राज्यों के मुकाबले आंध्रा प्रदेश में बिजली के रेट बहुत ज्यादा हैं. इतना ही नहीं झींगा का फीड भी महंगा हो गया है. क्लाइमेंट चेंज के चलते बेवक्त झींगा में बीमारियां आ जाती हैं. दवाईयों का खर्च भी बहुत ज्यादा है. इन सब के चलते हम इंटरनेशनल मार्केट में मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं. लगातार हमारे झींगा के दाम कम हो रहे हैं.
झींगा एक्सपर्ट और झींगालाला फूड चैन के संचालक डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि देश में झींगा उत्पादन नौ से 10 लाख टन पर पहुंच गया है. पंजाब-हरियाणा के साथ-साथ राजस्थान के चुरू तक में झींगा उत्पादन हो रहा है. लेकिन अफसोस की बात ये है कि झींगा फार्मर के पास एक्सपोर्ट के अलावा घरेलू बाजार नहीं है. हमारे देश में करीब 160 लाख टन मछली खाई जाती है. दो हजार रुपये किलों तक की मछली भी देश में खाई जा रही है. जबकि झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो है. दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो का रेड मीट खाया जा रहा है. जिसमे करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है. ऐसे में अगर हमारे देश में तीन से चार लाख टन झींगा की भी खपत हो जाए तो भारत झींगा के मामले में विश्व में नंबर वन होगा. जरूरत बस इतनी भर है कि अगर देश के दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई, चंडीगढ़, बेग्लोर आदि शहरों में भी झींगा का प्रचार किया जाए तो इसकी खपत बढ़ सकती है. यूपी और राजस्थान तो विदेशी पर्यटको के मामले में बहुत अमीर हैं. वहां तो और भी ज्यादा संभावनाएं हैं.
केन्द्रीय मत्स्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि मछली उत्पादन के मामले में आंध्रा प्रदेश और पंश्चिम बंगाल पहले और दूसरे नंबर पर हैं. इसके अलावा यूपी, ओडिशा, बिहार और कर्नाटक भी टॉप 10 में शामिल हैं. सबसे ज्यादा मछली उत्पादन साल 2020-21 में 121 लाख टन इनलैंड का है. जबकि 41 लाख टन मरीन प्रोडक्शन है. गौरतलब रहे कि कोस्टल एरिया में पकड़ी गईं मछलियां मरीन प्रोडक्शन में आती हैं, जबकि तालाब और नदी में पकड़ी गईं मछलियां इनलैंड प्रोडक्शन में आती हैं.
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