कश्मीर में मौसम आधारित फसलों के लिए कोई बीमा नहीं, भयंकर ओलावृष्टि के बाद बेसहारा रह गए सेब उत्पादक

कश्मीर में मौसम आधारित फसलों के लिए कोई बीमा नहीं, भयंकर ओलावृष्टि के बाद बेसहारा रह गए सेब उत्पादक

घाटी की अर्थव्यवस्था सेब और अन्य फलों पर बहुत अधिक निर्भर है. यहां 70 प्रतिशत से ज़्यादा परिवार इसी उद्योग पर निर्भर हैं. सरकार ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बताया था कि हाल ही में आई बाढ़ और ओलावृष्टि से पूरे क्षेत्र में 1,435.6 हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फलों की फसलें बर्बाद हो गई हैं. कई निविदाओं और समय सीमा विस्तार के बावजूद, कोई भी बीमा कंपनी आगे नहीं आई है.

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कश्मीर में मौसम आधारित फसलों के लिए कोई बीमा नहीं, ओलावृष्टि के बाद बेसहारा रह गए सेब उत्पादकसेब पर मौसम की मार

दक्षिण कश्मीर के मैदानी इलाकों के कई गांवों में, सेब उत्पादक पिछले कई सालों के सबसे बुरे मौसम की मार झेल रहे हैं. इसके ऊपर से फसल बीमा न होने के कारण, इसका सारा नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ रहा है. जून में हुई भयंकर ओलावृष्टि के कारण फसल की कटाई के लिए बहुत कम फसल बची, लगभग हर फल को नुकसान पहुंचा और लाभदायक सीजन की उम्मीदें चकनाचूर हो गईं.

कर्ज़ से जूझने को मजबूर सेब उत्पादक

गौरतलब है कि घाटी की अर्थव्यवस्था सेब और अन्य फलों पर बहुत अधिक निर्भर है. यहां 70 प्रतिशत से ज़्यादा परिवार इसी उद्योग पर निर्भर हैं. इस नुकसान ने कई परिवारों को अगले सीजन में कर्ज़ और अनिश्चितता से जूझने पर मजबूर कर दिया है. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में बकाया कृषि लोन ₹11,700 करोड़ को पार कर गया है, जबकि सक्रिय किसान क्रेडिट कार्ड खाते अब 11.13 लाख से ज़्यादा हैं.

1,435 हेक्टेयर की फसलें चौपट

सरकार ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बताया था कि हाल ही में आई बाढ़ और ओलावृष्टि से पूरे क्षेत्र में 1,435.6 हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फलों की फसलें बर्बाद हो गई हैं. दक्षिण कश्मीर के तीन जिलों में बाढ़ से 846.2 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है, जबकि शोपियां में ओलावृष्टि से 589.4 हेक्टेयर क्षेत्र नष्ट हो गया है.

सेब की फसलें लगभग पूरी तरह बर्बाद

अंग्रेजी अखबार 'बिजनेस लाइन' की एक रिपोर्ट में बागवान रियाज अहमद बताते हैं कि ओलावृष्टि ने फसल को लगभग पूरी तरह बर्बाद कर दिया है. उन्होंने झुलसे हुए सेबों के ढेर की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस साल तो पैक करने लायक कुछ भी नहीं बचा. आधे घंटे तक चने के आकार के ओले सेब से समृद्ध गांवों हंडेव, द्रावानी, वाडीपोरा, दर्शलिन और दाचू के बगीचों पर गिरे. ये क्षेत्र शोपियां जिले में सबसे बेहतरीन सेब उत्पादन के लिए जाने जाते हैं. सितंबर में ये कठिनाई और बढ़ गई जब लगातार बारिश और बाढ़ के कारण दक्षिण कश्मीर में सेब और धान की फसलें नष्ट हो गईं.

मगर किसानों का कहना है कि जब सरकारी मुआवज़ा दिया जाता है, तो वह उनके नुकसान का एक छोटा सा हिस्सा ही पूरा कर पाता है. अहमद ने कहा कि हमारे पास न तो कोई बीमा है, न ही कोई सुरक्षा कवच. एक तूफ़ान पूरे साल की रोज़ी-रोटी छीन सकता है. कुछ किसानों ने बताया कि उन्हें मुआवज़े के नाम पर सिर्फ़ ₹2,000 मिले.

अब तक कोई बीमा कंपनी आगे नहीं आई

2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के साथ शुरू की गई पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (RWBCIS), जो एक मौसम सूचकांक-आधारित कार्यक्रम है, अभी तक घाटी में शुरू नहीं हो पाई है. कई निविदाओं और समय सीमा विस्तार के बावजूद, कोई भी बीमा कंपनी आगे नहीं आई है. इसको लेकर कश्मीर के कृषि निदेशक सरताज अहमद शाह ने कहा कि RWBCIS में सेब, केसर और लीची जैसी फसलें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि लेकिन कई निविदाओं के बावजूद, बीमा कंपनियों ने रुचि नहीं दिखाई है. उन्होंने कहा कि कुछ कंपनियों ने स्पष्टीकरण मांगा है, जबकि कुछ अभी भी इसमें आनाकानी कर रही हैं.

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट में एक बीमा कंपनी के प्रतिनिधि ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अंतिम निर्णय लेने से पहले हम अभी भी जोखिम कारकों, उपज की मात्रा और पिछले दावों के पैटर्न का आकलन कर रहे हैं. अगले फसल उत्पादन के मौसम के करीब आने के साथ, किसानों का कहना है कि वे केवल यही उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार एक व्यावहारिक बीमा प्रणाली के साथ आगे आएगी, इससे पहले कि एक और तूफान उन्हें एक बार फिर अपने नुकसान का हिसाब देने के लिए मजबूर कर दे.

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