देश के प्रमुख सरसों उत्पादक राज्य राजस्थान में किसानों को सरसों के अच्छे दाम दिलाने के लिए किसान महापंचायत ने आंदोलन- 'सरसों सत्याग्रह' छेड़ दिया है. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में 11 फरवरी को राजस्थान के किसानों और किसान प्रतिनिधियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी कानून बनाने की मांग को लेकर नए आंदोलन का आगाज किया है. इस आंदोलन के तहत राज्य के किसान 1 मार्च से 15 मार्च तक सरसों मंडियों में उपज लेकर नहीं जाएंगे.
किसान महापंचायत ने ऐलान किया है कि इस दौरान अगर व्यापारी 6000 रुपये से बोली शुरू करके सरसों खरीदना चाहते हैं तो वे गांव से ही उपज खरीद सकते हैं, किसान मंडी में अपनी उपज लेकर नहीं जाएंगे. किसान महापंचायत ने राजस्थान के किसानों को शहरों, सड़कों पर आंदोलन में न उतारकर गांवों में रहकर ही आंदोलन करने का कार्यक्रम रखा है. इससे पहले किसान महापंचायत ने 29 जनवरी को गांव बंद का आंदोलन किया था. किसान महापंचायत ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को ईमेल के माध्यम से ज्ञापन भी भेजा है.
आंदोलन को लेकर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट पहले चरण में 30 जिलों में जनजागरण के लिए प्रवास करेंगे. उन्होंने प्रवास का कार्यक्रम भी जारी किया है. किसान महापंचायत ने बयान जारी कर कहा है कि किसानों द्वारा अपनी उपज का दाम खुद तय करने का देशभर में यह पहला उदाहरण है. सरसों का देश के कुल उत्पादन का लगभग आधा उत्पादन राजस्थान में ही होता है.
पिछले तीन वर्षों से तो किसानों को उनकी सरसों का वह न्यूनतम दाम भी नहीं मिल रहा है, जिसे सरकार न्यूनतम के नाम से तय करती है. पिछले साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5650 रुपये घोषित था, लेकिन सरकार की ओर से खरीद की समय पर सही व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को एक क्विंटल पर 1450 रुपए का घाटा उठाकर 4200 रुपए प्रति क्विंटल तक उपज बेचनी पड़ी.
राजस्थान में सरसों की पैदावार सामान्यत: 15 फरवरी तक आ जाती है, जबकि सरकार खरीद लगभग दो महीने के बाद अप्रैल में शुरू करती है. किसानों की ओर से 15 फरवरी से खरीद शुरू करने के लिए राज्य के अधिकारियों, राज्य के कृषि मंत्री, सहकारिता मंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय कृषि मंत्री, सहकारिता मंत्री और प्रधानमंत्री तक से लगातार मांग की जा रही है. राज्य और केंद्र के साथ आयोजित बैठकों में भी यह प्रमुख मुद्दा रहा है.
किसान महापंचायत ने कहा कि चालू वर्ष में सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5950 रुपए घोषित है. मंडियों में सरसों की आवक शुरू हो रही है. अभी बाज़ार भाव 5500 रुपये से कम है, मंडियों में आवक बढ़ते ही भावों में गिरावट की संभावना बनी रहती है. तब भी सरकार की ओर से खरीद का अभी अता पता ही नहीं है.
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के प्रावधानों में राज्य के कुल उत्पादन में से 25 प्रतिशत से अधिक खरीद नहीं करने के कारण 75 प्रतिशत उत्पाद तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे से बाहर चल रहा है. हालांकि, इस योजना में ‘कमी मूल्य भुगतान’ के विकल्प के चयन का अधिकार राज्यों को है, लेकिन किसानों के आग्रह के बाद भी राज्य सरकार ने इस विकल्प का इस्तेमाल नहीं किया गया.
15 दिन तक किसानों की ओर से सरसों नहीं बेचे जाने से सरकार के राजस्व को नुकसान होगा और बाजार में सरसों नहीं आने के कारण भारत देश में सरसों के तेल की कमी होंगी, जिससे पूरे वर्ष तक सरसों के गोदाम ख़ाली रहेंगे और व्यापारियों को बैंकों से लोन नहीं मिलेगा. 15 दिवसों तक पिराई नहीं होने से ऑयल मिल्स पूरी तरह से बंद होंगी, जिससे बाजार में खाद्य तेल आपूर्ति प्रभावित होगी. तेल पिराई करने वाले श्रमिकों को भुगतान देना पड़ेगा और काम भी नहीं कर पाएंगे.
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