धनिया, मेथी और लहसुन को सबसे अधिक मारता है पाला, रोगों के लक्षण और उपचार जानिए

धनिया, मेथी और लहसुन को सबसे अधिक मारता है पाला, रोगों के लक्षण और उपचार जानिए

जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेतों की उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली हवा की दिशा में खेतों के किनारे, पर बोई हुई फसल के आस-पास मेड़ों पर कचरा या अन्य व्यर्थ घास-फूस जलाकर धुआं किया जा सकता है. इससे 4 डिग्री तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

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धनिया, मेथी और लहसुन को सबसे अधिक मारता है पाला, रोगों के लक्षण और उपचार जानिएधनिये की खेती

अभी शीतलहर का दौर चल रहा है. इसे देखते हुए फसलों को बचाने की सलाह दी जाती है. राजस्थान में चल रही शीतलहर और मौसम विभाग की चेतावनी को देखते हुए फसलों को पाले के प्रकोप से बचाव के लिए किसान उद्यान विभाग की ओर से बताए गए उपायों का प्रयोग कर सकते हैं. उप निदेशक उद्यान राधेश्याम मीणा बताया कि जब पाला पड़ने की संभावना हो तो खेत में सिंचाई करनी चाहिए. नमीयुक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है और भूमि का तापमान अचानक से कम नहीं होता है. इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीतलहर और पाले से नुकसान की संभावना कम रहती है. वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है.

जिन भी दिनों में पाला पड़ने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर घुनलशील गंधक 0.2 प्रतिशत अथवा गंधक का तेजाब 0.1 प्रतिशत की दर से 1000 ली. प्रति हेक्टेयर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह से लगे. छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है. यदि इस अवधि के बाद भी शीतलहर की संभावना बनी रहे तो छिड़काव को 15-15 दिन के अंतर से दोहराते रहें. 

क्या कहा एक्सपर्ट ने?

उप निदेशक उद्यान ने बताया कि सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक का तेजाब 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक और रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में सहायक है.

जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेतों की उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली हवा की दिशा में खेतों के किनारे, पर बोई हुई फसल के आस-पास मेड़ों पर कचरा या अन्य व्यर्थ घास-फूस जलाकर धुआं किया जा सकता है. इससे 4 डिग्री तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि पौधशालाओं के पौधों और सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नकदी सब्जी फासलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलिथीन अथवा भूसे से ढक दें. वायुरोधी टांटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानी उत्तर पश्चिम की तरफ बांधें. नर्सरी, किचन गार्डन में उत्तर पश्चिम की तरफ टांटियां बांधकर क्यारियों के किनारे पर रत में लगाएं और दिन में पुनः हटाएं.

दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्त्तर पश्चिगी मेड़ों पर और बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू और जामुन आदि लगा दिए जाएं तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है. शीत ऋतु में फसलों में कई रोगों के होने की संभावना रहती है. इसके लक्षण और रोकथाम के बारे में नीचे बताया जा रहा है.

रोगों के लक्षण और उपचार

धनिये का स्टेम गॉल (लोंगिया) रोग

धनिये के तने पर छोटी छोटी फैली हुई गांठ बनना, धनिये की डोडी की आकृति सिके हुए लौंग जैसे लगना. बचाव के लिए खड़ी फसल में रोकथाम के लिए बुवाई के 45,60 और 75-90 दिन पर हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल नामक दवाई 2 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

मेथी और लहसुन में तुलासिता रोग

मेथी में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग का कवक जाल दिखना और ऊपर की ओर पीलापन होना. लहसुन में पत्तियों पर बैगनी रंग के धब्बे बनना और फूलना एवं सूखना. 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब के घोल का छिड़काव करें.

टमाटर झुलसा रोग

टमाटर की फसल में झुलसा रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 63 प्रतिशत, कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत डब्लू, पी. 2 ग्राम/लीटर या मैंकोजेब 64 प्रतिशत, मेटालेक्जिल 8 प्रतिशत डब्लयू.पी. 2 ग्राम/लीटर घोल का छिड़काव रोग के शुरू होने की अवस्था और छिड़काव के 15 दिन बाद फिर दोहराएं.

 

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