इस बार मक्के की हालत खराब है. उपज तो बंपर निकली है, लेकिन किसान माथे पर हाथ धरे बैठा है. ऐसा इसलिए क्योंकि उसे मक्के से कमाई नहीं हो रही. किसान को मलाल इस बात का भी है सरकार ने मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ा दिया. लेकिन मक्के की सरकारी खरीद नहीं हो रही है. इससे एमएसपी योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. किसानों की शिकायत है कि आखिर वे अपनी उपज लेकर कहां जाएं. खुले बाजार में उपज बेचना चाहें तो व्यापारी औने-पौने दाम देते हैं. सरकारी मंडी में बेचना चाहें तो एमएसपी का भाव नहीं मिल रहा. ऐसे में किसानों के सामने समस्या है कि वे कहां जाएं. ये सवाल पंजाब में लुधियाना के किसानों का है.
आलम ये है कि सरकार ने मक्के की एमएसपी को 1962 रुपये से बढ़ाकर 2090 रुपये कर दिया है. इसके बावजूद किसानों के अरमानों पर पानी फिरा जा रहा है. कारण ये है कि एमएसपी कागजों में तो खूब है, लेकिन उस रेट पर किसानों से मक्का नहीं खरीदा जा रहा है. अब किसान अपनी उपज को रखने के बजाय व्यापारियों के हाथों बेच रहे हैं, वह भी कम दाम पर. किसान इस दाम से बेहद निराश और मायूस हैं.
लुधियाना में वसंत मक्के की खेती फरवरी में होती है और कटाई जून में. फिर उसी खेत में धान की रोपाई शुरू कर दी जाती है. 'दि ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक, एक लाख हेक्टेयर में बसंत मक्के की बुआई की गई थी जबकि पिछले साल 44,000 हेक्टेयर में ही खेती हुई थी.
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एमएसपी का ऐलान होने के बाद इस साल राज्य के कई किसानों ने मक्के की खेती में रुचि दिखाई थी. हालांकि एमएसपी का ऐलान किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाने में विफल रहा है. नाराज़ किसान सरकारी दखल और एमएसपी के लिए सख्त कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें अपनी उपज के लिए कुछ अच्छा सौदा मिल सके.
एमएसपी के मसले पर भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल कहते हैं, “इस साल किसान खुश थे और सरकार की ओर से बढ़ाई गई एमएसपी की घोषणा के बाद मक्के की फसल का रकबा बढ़ गया. लेकिन अब वे ठगे हुए महसूस कर रहे हैं. एमएसपी की घोषित कीमत 2,090 रुपये थी, लेकिन किसानों को केवल 1,400-1,500 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल पाए. बिना सूखे मक्के के लिए प्रस्तावित कीमत महज 700-800 रुपये प्रति क्विंटल है. इससे किसानों में घोर मायूसी है.''
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लुधियाना जिले के एक किसान जीवन सिंह को खेत के किराये के साथ इनपुट लागत के रूप में 20,000 रुपये प्रति एकड़ खर्च करने के बावजूद अपनी उपज के लिए 1,500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है. यही हाल यहां के अधिकांश किसानों का है जबकि उन्होंने एमएसपी पर फसल बेचने की उम्मीद में मक्के की बुआई की थी. अब वे ठगे से महसूस कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है.
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