टमाटर महाराष्ट्र में किसानों की प्रमुख बागवानी फसल है. यहां किसान साल में तीन बार इसकी फसल लेते हैं. महाराष्ट्र में नासिक, पुणे, सतारा, अहमदनगर, नागपुर, सांगली जिलों में इसकी सबसे अधिक खेती होती हैं. टमाटर का प्रयोग एकल व अन्य सब्जियों का जायका बढ़ाने में काफी मददगार होता है. इसके अलावा त्वचा की देखभाल में भी टमाटर भी का प्रयोग किया जाता है. टमाटर विटामिन ए, बी और सी के साथ-साथ चूना, आयरन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है. भारत में इसकी खेती राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में प्रमुख रूप से की जाती है. तो वहीं महाराष्ट्र में टमाटर की खेती का क्षेत्रफल लगभग 56000 हेक्टेयर है. मध्य प्रदेश इसका सबसे बड़ा उत्पादक है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार टमाटर की खेती पूरे साल की जा सकती है. तापमान में अत्यधिक वृद्धि टमाटर के पौधे की वृद्धि को अवरूद्ध कर देती है. तापमान में उतार-चढ़ाव का फलने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. पौधों की वृद्धि 13 से 38 डिग्री सेल्सियस पर अच्छी होती है. फूल और फल अच्छे लगते हैं. रात का तापमान 18 से 20 सेल्सियस के बीच रहे तो टमाटर फल के लिए अच्छा होता है.
जनवरी में टमाटर के पौधे की रोपाई के लिए किसान नवंबर माह के अंत में टमाटर की नर्सरी तैयार कर सकते हैं। पौधों की रोपाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में करना चाहिए. यदि आप सितंबर में इसकी रोपाई करना चाहते हैं तो इसकी नर्सरी जुलाई के अंत में तैयार करें.पौधे की बुवाई अगस्त के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में करें. मई में इसकी रोपाई के लिए मार्च और अप्रैल माह में नर्सरी तैयार करें.पौधे की बुवाई अप्रैल और मई माह में करें.
टमाटर की खेती के लिए मध्यम से भारी मिट्टी उपयुक्त होती है. फल हल्की मिट्टी में जल्दी पक जाते हैं, पत्तियों की निकासी अच्छी होती है और फसल की वृद्धि अच्छी होती है. लेकिन ऐसी मिट्टी को जैविक खाद की बहुत अधिक आपूर्ति और बार-बार पानी देने की आवश्यकता होती है.
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टमाटर की देशी किस्में: पूसा शीतल, पूसा-120, पूसा गौरव, अर्का विकास, अर्का सौरभ और सोनाली प्रमुख हैं. टमाटर की हाइब्रिड किस्में: पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाईब्रिड-4, रश्मि और अविनाश-2 प्रमुख हैं. ये किस्म तीनों मौसमों में ली जा सकती है. रोपण के 45 से 90 दिनों के बाद फलों की कटाई की जाती है. फल चपटे आकार के साथ गहरे लाल रंग के होते हैं. प्रति हेक्टेयर उत्पादन 325 क्विंटल है.
खेत को 3-4 बार जोतकर अच्छी तरह तैयार कर लें. पहली जुताई जुलाई माह में मिट्टी पलटने वाले हल अथवा देशी हल से करें. खेत की जुताई के बाद समतल करके 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को समान रूप से खेत में बिखेरकर पुन: अच्छी जुताई कर लें और घास-पात को पूर्णरूप से हटा दें. इसके बाद टमाटर के पौध को 60 *45 सेंमी. की दूरी लेते हुए रोपाई कर सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक रोपण के 3 से 4 दिन बाद हल्का पानी दें. और उसके 8 से 10 दिन बाद दूसरा पानी दें. टमाटर की सिंचाई मॉनसून के मौसम में 8 से 10 दिनों के अंतराल पर और सर्दी के मौसम में 5 से 7 दिनों के अंतराल पर और गर्मी के मौसम में 3 से 4 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए. भारी काली मिट्टी में हमेशा हल्का पानी दें.
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