भारत में वर्षा आधारित कृषि के लिए Climate Change की चुनौतियां किसानों के लिए सबसे ज्यादा परेशानी का सबब बन रही है. जलवायु परिवर्तन की वजह से कभी कम बारिश फसल को सुखा देती है तो कभी जरूरत से ज्यादा बारिश फसल काे नष्ट कर देती है. इस साल भी दक्षिण पश्चिम मॉनसून उत्तर भारत के किसानों के लिए इसी तरह की मुसीबत लेकर आया है. खासकर, एमपी में इस साल देर से मॉनसून सक्रिय होने के कारण Kharif Crops को नुकसान हुआ, फिर सोयाबीन की उपज की खरीद MSP से बहुत कम दाम पर होने के कारण किसानों को आंदोलन करना पड़ा. अब लौटते मॉनसून में जरूरत से ज्यादा हुई बारिश के बाद पानी की अधिकता को बढ़ा कर फसलों का नुकसान बढ़ा दिया है. इसके मद्देनजर धान, कपास और सोयाबीन के किसानों ने अब सरकार से Field To Field Survey कराकर मुआवजा देने की मांग की है. यदि ऐसा नहीं हुआ तो किसानों ने बड़े आंदोलन की धमकी दी है.
एमपी में मालवा निमाड़ संभाग के किसानों ने इस साल लौटते मॉनसून के कारण व्यापक पैमाने पर Crop Damage की समस्या सरकार के समक्ष उठाई है. इस इलाके में सोयाबीन के किसान पहले से ही आंदोलन कर रहे हैं.
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उन्होंने किसानों के हवाले से बताया कि इस साल सोयाबीन और कपास की फसलें दो बार की बारिश की अधिकता के कारण बर्बाद हो गई हैं. गौरतलब है कि अक्टूबर के पहले सप्ताह में लौटते मॉनसून की बारिश ने पक कर तैयार हो चुकी फसलों को कटाई होने से पहले ही नष्ट कर दिया. उन्होंने Revenue Dept के अनुमान का हवाला देते हुए कहा कि इस क्षेत्र में कई जगहों पर 80 प्रतिशत तक फसलें नष्ट हो गई है. इससे मालवा निमाड़ अंचल में किसानों की समस्या बहुत गंभीर हो गई है.
Farmers Organisations का दावा है कि राज्य के खंडवा जिले में फसल को सबसे अधिक नुकसान दर्ज किया गया है. राजस्व विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इस जिले में लगभग 2.5 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन, 10 हजार हेक्टेयर में प्याज, और 55 हजार हेक्टेयर में कपास की खेती की गई थी.
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किसानों का कहना है कि सितंबर की बारिश ने सोयाबीन और प्याज की फसलों को 70 से 80 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाया है. बीकेएस सहित अन्य किसान संगठनों ने कई बार जिला प्रशासन से सर्वे कराने की मांग की है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक जिला प्रशासन द्वारा अब सर्वे टीमें गठित की गई हैं. इस लेटलतीफी के विरोध में प्रशासन के खिलाफ Farmers Protest भी शुरू हो गया है.
इसी प्रकार झाबुआ जिले में भी फसल को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है. इस जिले में 1.89 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई की गई थी. इसमे से 70 से 80 प्रतिशत फसलें , लेकिन अधिक वर्षा के कारण नष्ट हुई है. भारतीय किसान यूनियन (BKU) के सचिव जितेंद्र पाटीदार का आरोप है कि झाबुआ में भी प्रशासन सर्वे कराने में देरी कर रहा है. इससे जिले के किसानों का आक्रोश बढ़ रहा है.
वहीं, शाजापुर जिले में 2.60 लाख हेक्टेयर जमीन पर सोयाबीन बोई गई थी. यहां भी फसल को नुकसान होने के बाद जिले में कुछ इलाकों का सर्वे शुरू हुआ है. जिले के किसान संगठनों का दावा है कि खरीफ फसलों में 50 से 60 फीसदी फसल को क्षति हुई है. इसी प्रकार रतलाम जिले में लगभग 3.25 लाख हेक्टेयर में बोई गई फसलों में अधिकांश नष्ट हो गई है.
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किसान संघ के जिलाध्यक्ष ललित पालीवाल ने जिला प्रशासन पर धीमी गति से सर्वे करने का आरोप लगाते हुए का दावा किया कि रतलाम में 50 प्रतिशत से अधिक फसलों को नुकसान हुआ है. वहीं, मंदसौर जिले में 2.23 लाख हेक्टेयर में बोई गई सोयाबीन की फसल 40 से 60 प्रतिशत तक खराब हो गई है. इस जिले में भी सर्वे शुरू नहीं हो पाया है.
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