धान की अधिक खेती के बावजूद चावल उत्पादन में आ सकती है गिरावट, वजह जान लें

धान की अधिक खेती के बावजूद चावल उत्पादन में आ सकती है गिरावट, वजह जान लें

इस साल भारत के खरीफ चावल उत्पादन में गिरावट देखी जा सकती है. दरअसल, पंजाब में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद निश्चित रूप से चावल का कम से कम 20 प्रतिशत कम उत्पादन होगा.

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धान की अधिक खेती के बावजूद चावल उत्पादन में आ सकती है गिरावट, वजह जान लेंचावल उत्पादन में आ सकती है गिरावट

इस साल भारत के खरीफ चावल उत्पादन में गिरावट देखी जा सकती है. दरअसल, चावल उत्पादन पिछले साल के 1210 लाख टन से घटकर लगभग 1200 लाख टन रहने की संभावना है  क्योंकि अत्यधिक बारिश और बाढ़ ने कुछ राज्यों में पैदावार को प्रभावित किया है. इसके अलावा धान उत्पादक राज्यों में यूरिया की कमी के कारण भी पैदावार में मामूली कमी आने की आशंका है.

राज्यवार रकबे के आंकड़ों और बारिश के पैटर्न को देखते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि बड़े स्तर पर स्थिति पिछले खरीफ सीजन जैसी ही है और अब तक फसल की स्थिति भी अच्छी है. एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर 2024 जैसी ही पैदावार की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन पंजाब में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद निश्चित रूप से चावल का कम से कम 20 प्रतिशत कम उत्पादन होगा.

उत्पादन में देखी जा सकती है गिरावट

5 सितंबर तक खरीफ धान का रकबा पिछले साल की समान अवधि की तुलना में लगभग 5 प्रतिशत बढ़ा है, और यह 2025 सीजन के कुल रकबे 434.13 लाख हेक्टेयर को पार कर गया है. खरीफ सीजन में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में यह वृद्धि सबसे ज्यादा 13.5 प्रतिशत है. इसके बावजूद पंजाब बाढ़ की वजह से धान के कुल उत्पादन में गिरावट देखी जा सकती है.

कृषि वैज्ञानिक एसके सिंह ने बताया कि चावल उत्पादक जिलों में अब तक अच्छी बारिश हुई है और अधिकांश क्षेत्र सिंचित हैं. इसलिए इस साल उत्तर प्रदेश में चावल का उत्पादन 210 लाख टन से ज्यादा हो सकता है. 2024 के खरीफ सीजन में राज्य में उत्पादन 200 लाख टन था.

हालांकि, चावल निर्यातक एसोसिएशन के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव ने कहा कि पंजाब में बाढ़ के बावजूद, बढ़े हुए रकबे और अच्छी बारिश के कारण उत्पादन पिछले साल से ज़्यादा होगा. राव ने कहा कि धान कुछ दिनों तक जलभराव को झेल सकता है और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा उत्पादन से पंजाब में हुए नुकसान की भरपाई हो जाएगी.

बाढ़ की वजह से गिर सकता है उत्पादन 

भारतीय चावल निर्यातक महासंघ के अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने कहा कि उत्पादन 1350 लाख टन तक पहुंच सकता है, क्योंकि हर जगह फसल अच्छी स्थिति में है. लेकिन उन्होंने आगे कहा कि पंजाब के उत्पादन में 1.15 करोड़ टन की गिरावट आ सकती है. पंजाब में धान के खेत अभी भी जलमग्न हैं, इसलिए कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इस खरीफ सीजन में कम से कम 6 करोड़ टन चावल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है.

इसके अलावा, तेलंगाना और कर्नाटक में भी नुकसान हो सकता है, जहां तुंगभद्रा क्षेत्र में रखरखाव कार्यों के कारण बुवाई प्रभावित हुई है. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी धान की फसल प्रभावित हुई है. वहीं, दिल्ली के एक व्यापारी ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में भारी बारिश और बाढ़ के कारण बासमती चावल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है.

बंगाल की नजर रिकॉर्ड बनाने पर

'बिजनेसलाइन' के मुताबिक, भारत के तीसरे सबसे बड़े खरीफ चावल उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल में किसानों ने अब तक 43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुवाई की है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह रकबा 41.55 लाख हेक्टेयर था. राज्य ने इस सीज़न के लिए 42 लाख हेक्टेयर धान की बुवाई का लक्ष्य रखा है. इस बीच ग्रामीण विकास मंत्री प्रदीप मजूमदार ने बताया कि धान की बुवाई लक्षित क्षेत्र से आगे निकल गई है. बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है. उन्होंने कहा कि राज्य इस सीज़न में रिकॉर्ड धान की फसल की ओर बढ़ रहा है. पश्चिम बंगाल ने 2024 के खरीफ में 1150 लाख टन धान का उत्पादन किया था.

तेलंगाना की बढ़ी मुश्किलें

तेलंगाना में सितंबर के पहले सप्ताह तक 9.98 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई पूरी हो चुकी थी, जो पिछले साल इसी अवधि के 9 लाख हेक्टेयर से अधिक है. यह 2025-26 के खरीफ सीजन के लिए लक्षित 10.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से कम है. दरअसल, यहां के सिंचित क्षेत्रों में, 8.05 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य के मुकाबले 7.61 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया है. साथ ही वर्षा आधारित क्षेत्रों में, लक्षित 2.58 लाख हेक्टेयर में से 2.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया है. राज्य ने इस वर्ष 46 लाख टन धान उत्पादन का लक्ष्य रखा है. लेकिन तेलंगाना में अगस्त में फसल वृद्धि के महत्वपूर्ण चरण के दौरान भारी बारिश और यूरिया की कमी से उत्पादन प्रभावित हो सकता है. अखिल भारतीय किसान सभा के नेता एस मल्ला रेड्डी ने बताया कि फसल बढ़वार के समय यूरिया की कमी हुई है.  इससे उपज में 10-15 प्रतिशत की कमी आ सकती है.

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