महाराष्ट्र के बाद मध्य प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा Soyabean Producer राज्य है. खासतौर पर एमपी के नर्मदापुरम और मालवा निमाड़ इलाके में बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खेती होती है. इस साल महाराष्ट्र की ही तरह एमपी में भी सोयाबीन के किसानों में उपज का सही दाम नहीं मिल पाने के कारण सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ गई है. राज्य में सोयाबीन की थोक कीमत पिछले एक दशक में अपने न्यूनतम स्तर पर आ गई है. इस वजह से सोयाबीन के किसानों की नाराजगी को लोग जायज मान रहे हैं. आलम यह है कि इस इलाके के किसान जिस कीमत पर 12 साल पहले सोयाबीन की उपज बेचते थे, इस साल उसी दाम पर किसान अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने इस स्थिति के लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए किसानों का दर्द सरकार तक पहुंचाने के लिए आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है. इस बीच केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के सोयाबीन किसानों की समस्या को भी समझते हुए Crop Insurance के 225 करोड़ रुपये के दावों का निस्तारण कर जल्द मुआवजा राशि किसानों को देने का भरोसा दिलाया है.
केंद्र सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 4892 रुपये प्रति कुंतल तय किया है. इस साल महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खरीद एमएसपी से लगभग 2000 रुपये तक कम कीमत पर हुई है.
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उनका कहना है कि चूंकि सरकार तिलहन फसलों की सरकारी खरीद नहीं करती है, इसलिए किसानों को अब नुकसान की भरपाई होने की भी कोई उम्मीद नहीं है. अगर सरकार एमएसपी पर सोयाबीन की खरीद करती, तो किसानों को बाजार में कम कीमत पर उपज बेचने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता.
सरकार के अपने ही आंकड़े बताते हैं कि साल 2012 में सोयाबीन की एमएसपी 2240 रुपये प्रति कुंतल थी. उस समय किसानों ने Open Market में 3800 से 4000 रुपये प्रति कुंतल की कीमत पर सोयाबीन बेचा था. अब 12 साल बाद किसान फिर उसी कीमत पर उपज बेचने के लिए मजबूर हैं. इस तथ्य से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाजार किसानों के लिए कितना हितकारी है.
जानकारों की राय में इस साल सोयाबीन का बाजार किसानों के लिए परेशानी बढ़ाने वाला साबित हो रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह सरकार की गलत नीति है. भोपाल के Agriculture Market Expert योगेश द्विवेदी ने बताया कि दुनिया में सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक Latin American देशों में इस साल उपज बहुत अच्छी होने के बाद केंद्र सरकार ने सोयाबीन पर लगने वाले आयात शुल्क में भारी कटौती कर दी है.
उन्होंने बताया कि भारत में सोयाबीन की उपज का आयात नहीं होता है, बल्कि सोयाबीन का तेल आयात किया जाता है. वहीं घरेलू स्तर पर सोयाबीन के जो कारोबारी हैं, वे Import Duty घटने पर अपने देश के किसानों से सोयाबीन खरीद कर उसका तेल निकालने के बजाय कम कीमत पर सोयाबीन का तेल आयात कर लेते हैं. इससे घरेलू बाजार में सोयाबीन की मांग गिर जाती है, लिहाजा कीमत में भी गिरावट आ जाती है.
किसानों को सोयाबीन की उचित कीमत न मिल पाने का दूसरा कारण सरकार द्वारा तिलहन फसलों की सरकारी खरीद नहीं किया जाना है. सरकार सिर्फ इन फसलों की एमएसपी तय कर देती है. तिलहन फसलों में सिर्फ सोयाबीन ही नहीं, बल्कि मूंगफली का भी यही हाल है. मूंगफली की एमएसपी 6783 रुपये प्रति कुंतल है. जबकि बाजार में किसानों को 4 हजार रुपये प्रति कुंतल पर मूंगफली बेचनी पड़ रही है. ऐसे में तिलहन फसलों की सरकारी खरीद न होने के कारण सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती है.
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महाराष्ट्र के बाद अब एमपी में भी सोयाबीन के किसानों को उपज का 12 साल पुराना दाम मिल पाने से उनमें भारी नाराजगी है. इसे देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा की एमपी इकाई ने मध्य प्रदेश सरकार से किसानों को साेयाबीन के लिए भावातंर योजना शुरू कर 6 हजार रुपये प्रति कुंतल की दर से बोनस का भुगतान करने की मांग की है.
एमपी के किसान नेता राहुल राज ने बताया कि संगठन ने सरकार को इस मांग पर विचार कर कोई फैसला करने के लिए 5 दिन का समय दिया है. यदि सरकार इस मांग को नहीं मानेगी तो मोर्चा की ओर से सोयाबीन पर भावांतर देने की मांग को लेकर 1 से 7 सितंबर तक राज्य के हर गांव में किसान पंचायत सचिव को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन देंगे.
इधर, महाराष्ट्र में आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के किसानों को राहत देने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने भारी बारिश के कारण परभणी जिले के 2 लाख किसानों की सोयाबीन की फसल नष्ट होने के एवज में बीमा कंपनियों को एक सप्ताह के भीतर 225 करोड़ रुपये के मुआवजे का पैसा देने का निर्देश दिया है. फौरी तौर पर देखा जाए तो महाराष्ट्र के किसानों की परेशानियों पर मरहम लगाने के लिए सरकार का यह कदम नाकाफी है.
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