मशरूम उत्पादन रोजगार का एक बेहतरीन जरिया हो सकता है. उचित मार्गदर्शन और तकनीकी प्रबंधन के साथ इसे किया जाए तो यह काफी लाभदायक होता है. रांची के रहने वाले युवा शुभम मोदी ने इसे सच कर दिखाया है. शुभम ने एक छोटे स्तर से शुरुआत की थी पर आज मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में पूर्वी भारत में शुभम मोदी एक बड़े नाम के तौर पर उभरे हैं. उनके मशरूम की मांग सिर्फ बिहार झारखंड की नहीं देश के बड़े महानगर जैसे दिल्ली पश्चिम बंगाल छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में भी अपने उत्पाद भेज रहे हैं जहां उनकी खूब मांग है.
बिजनेस परिवार के ताल्लुक रखने वाले शुभम मोदी का झुकाव मशरूम उत्पाद की तरफ कैसे हुआ, जबकि यह कच्चा बिजनेस की श्रेणी में आता है. इस सवाल के जवाब में शुभम मोदी ने कहा कि अब समय बदल रहा है. मार्केट में मशरूम की मांग बढ़ रही है उन्होंने मार्केट में भी इस बात को लेकर जानकारी हासिल की कि बाजार में मशरूम की अच्छी खासी मांग हैं, पर मांग पूरी नहीं हो रही है, यह सब देखकर उन्होंने मशरूम का व्यवसाय शुरू किया. उन्होंने बताया की शुरुआत में उन्होंने इसके बारे में पूरी जानकारी हासिल की. वो पलांडू स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिसर में गए, जहां पर मशरूम विशेषज्ञ डॉ सुदर्शन मौर्या से उन्होंने मुलाकात की.
इसके बाद ही उन्होंने मशरूम की खेती करने का मन बनाया और साल 2014 में इसकी शुरुआत की. रांची के बीआईटी मेसरा के पास इन्होंने मशरूम प्लांट लगाया. शुभम मोदी बताते हैं कि उस वक्त उनका फार्म द मशरूम टब पूर्वी भारत का सबसे बड़ा मशरूम उत्पादन प्लांट था. इसके लिए उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्हें अपने भाई के साथ मिलकर इस प्लांट को शुरू किया है. प्लांट की उत्पादन क्षमता का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि हर महीने 60 टन मशरूम का उत्पादन वो अपने फार्म में करते हैं, जिसे रांची, बिहार कोलकाता के अलावा अन्य शहरों के बाजारों में बिक्री के लिए भेजा जाता है.
शुभम बताते हैं कि रांची में उगाए गए बटन मशरूम की बहुत मांग होती है. इसके अलावा उनके फार्म मे कंपोस्ट तैयार किया जाता है. जो किसान कंपोस्ट तैयार नहीं कर सकते हैं उन्हें यहां पर कंपोस्ट तैयार करके दिया जाता है. परेशानियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहां कि झारखंड में मशरूम उत्पादन के लिए कच्चा माल नहीं मिलता है. हम गेहूं की भूसी के लिए पूरी तरह बिहार और उत्तर प्रदेश पर निर्भर रहते हैं.
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