झारखंड में मोटे अनाज की खेती के लिए किसोनों को जागरूक किया जा रहा है साथ ही उन्हें फिर से मे अनाज की खेती करने के लिए योजनाओं पर भी विचार किया जा रहा है. पर जमीनी सच्चाई यह है कि किसानों को बाजरा की खेती करने के बाद उसे बेचने में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल राज्य के संताल परगना के तीन जिलों में बाजरा की खेती को लेकर एक सर्वेक्षण किया गया. इस दौरान पता चला कि छोटे और सीमांत किसानों को बाजरा के उत्पादन से लेकर मार्केटिंग करने तक में परेशानी हो रही है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सितंबर 2022 से लेकर मार्च 2023 के बीच संथाल परगना क्षेत्र के तीन जिलों दुमका, पाकुड़ और साहिबगंज में 488 किसानों के बीच एम्पॉवरिंग एनर्जी-वॉटर-एग्रीकल्चर नेक्सस (एनजीओ का एक नेटवर्क) के सहयोग से एक एनजीओ, स्विचऑन फाउंडेशन ने किसानों के बीच जाकर सर्वेक्षण किया था. संताल परगना के छोटे और सीमांत किसानों के बीच यह सर्वे किया गया. इसमें किसानों को समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों के बारे में जानने का प्रयास किया गया. एनजीओ के एक प्रवक्ता के मुताबिक रिपोर्ट के दौरान ऐसे सवाल पूछे गए जिसमें निम्न आय स्तर, कम भूमि का आकार, उच्च कृषि इनपुट लागत, विश्वसनीय सिंचाई सुविधाओं की कमी और बाजार केंद्रों तक आसानी से पहुंच जैसे सवाल शामिल थे.
तीन जिलों में सर्वे करने के बाद पाया गया कि 66 प्रतिशत ऐसे किसान हैं बाजरा की खेती जरूर करते हैं. जबकि 34 फीसदी ऐसे किसान हैं जो बाजरा नहीं उगाते हैं. इनमें 88 फीसदी ऐसे किसान हैं जिन्हें पता है कि बाजरा की खेती में कम पानी की खपत होती है. इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात यह निकलकर सामने आई की बाजरा की खपत पाकुड़ और साहिबगंज में 90-99 प्रतिशत और दुमका में 62 प्रतिशत थी. यहां के किसान बड़े पौमाने पर बाजरा की खेती करते हैं क्योंकि इन जिलों की जलवायु बाजरे की खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है.
इन जिलों में 50 प्रतिशत ऐसे किसान हैं जो तीन एकड़ से अधिक जमीन पर बाजरा की खेती करते हैं. जबकि एक एकड़ से कम जमीन पर बाजरा की खेती करने वाले किसानों की संख्या एक प्रतिशत है. एनजीओ के प्रवक्ता ने कहा कि इससे पता चलता है कि बाजरा की खेती करने वाले आधे किसान छोटे और सीमांत किसान हैं जबकि बाकी किसान अर्ध-मध्यम श्रेणी से आते हैं. सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक किसानों ने बताया की कृषि कार्यों से उन्हें प्रतिमाह 1000 रुपये से लेकर 3000 रुपये तक की आमदनी होती है जो उन्हें निम्न आय की श्रेणी वाले समूह में रखता है.
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