झारखंड में एक बार फिर सूखे की स्थिति है. किसानों को अब बैक टू बैक सूखे का डर सताने लगा है. इस बार का सूखा पिछले बार के सूखे से अधिक खतरनाक माना जाता रहा है क्योंकि इस साल किसानों के पास समस्याएं अधिक हैं. इस बार हालात पिछले बार से भी बुरे हैं. राज्य में कई ऐसे जिले हैं जहां पर 30 से 40 फीसदी ही बारिश हुई है. इसके कारण इस बार धान की रोपाई पर सीधा असर पड़ा है. इस बार झारखंड के किसानों के हालात को बयान करने के लिए एक लाइन बिल्कुल सटीक बैठ रही है. वो यह है कि खेत भी खाली, जेब भी खाली, घर से धान भी खाली. इस पूरी खबर में पढ़िये ये सभी शब्द कैसे राज्य के किसानों से जुड़े हुए हैं.
खेत भी खाली का जिक्र इसलिए है कि जो किसान पहले सात एकड़ में खेती करते थे, इस बार सिर्फ दो एकड़ में ही खेती कर पाए हैं. किसी तरह दो एकड़ की धान को बचा पाए तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी. मांडर प्रखंड के ग्राम चुंद के किसान रामहरी उरांव बताते हैं कि उनके पास आठ एकड़ जमीन है जिसमें वो धान की खेती करते थे. पर इस बार मुश्किल से एक एकड़ में किसी तरह सिंचाई करके धान की रोपाई करने में सफल हुए हैं. फिर भी उन्हें इस बार का डर सता रहा है कि अगर आगे बारिश नहीं हुई तो इसकी पूंजी भी डूब जाएगी. वहीं एक अन्य किसान हेमंत उरांव बताते हैं कि उनका खेत तालाब के बगल में है, पर पानी के अभाव के कारण ढाई एकड़ जमीन में खेती नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि इस साल वो धान की खेती नहीं कर रहे हैं.
वहीं रामगढ़ जिले की एक महिला किसान जो बाल्टी से भरकर अपने खेत में पानी भर रही थीं, उन्होंने बताया कि सिंचाई का कोई साधन नहीं है. रोपाई का समय पार हो चुका है. ऐसे में किसी तरह खेत को गीला करके इसमें धान की रोपाई कर दे रहे हैं. बाकी पैदावार होना नहीं होना भगवान के हाथ में है. इस तरह सभी किसान इस बार मायूस हैं.
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घर में धान भी खाली शब्द का मतलब आप इससे समझ सकते हैं कि झारखंड में अधिकांश किसान हर साल जून महीना आते-आते तक अपना पिछले साल का धान बेच देते हैं. और नए धान के बीज खरीदकर खेती करते हैं. इसलिए किसान पिछले साल का धान बेच चुके हैं. तो घर में भी धान बचा हुआ नहीं है.
अब समझिए जेब खाली शब्द का इस्तेमाल क्यों किया गया है. पिछले साल किसानों ने बड़ी मेहनत से धान की खेती की थी. अपना धान उपजाकर सरकार को बेचा था. पर इसके बावजूद आज भी राज्य के 29000 किसानों को धान बिक्री की दूसरी किश्त की राशि का भुगतान नहीं हुआ है.
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सरकार के पास किसानों का 167 करोड़ रुपया बकाया है. हैरत की बात यह है कि इसके पैसे कब मिलेंगे और कौन देगा, इसकी जवाबदेही और जवाब किसी के पास नहीं है. झारखंड की वर्तमान स्थिति की बात करें तो रामगढ़, बोकारो और रांची जिले से सामने आ रही तस्वीरों के मुताबिक किसानों के खेतों में पानी के अभाव में दरार पड़ रही है. इस समय जब तालाब और कुएं लबालब भरे रहते थे, वो सूखे खेत की तरह दिख रहे हैं.
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