झारखंड में मौसम विभाग ने अगले चार दिनों के लिए घने कोहरे को लेकर येलो अलर्ट जारी किया है. इसके साथ ही 17 और 18 जनवरी को राज्य के अलग-अलग जिलों में बारिश की संभावना जताई गई है. इस बीच राज्य के कई जिलों में न्यूनतम तापमान पांच डिग्री से नीचे रिकॉर्ड किया गया है. इसके बाद तापमान में तीन से चार डिग्री की बढ़ोतरी हो सकती है. मौसम में हो रहे उतार चढ़ाव, कोहरे और सूखे मौसम के कारण फसलों मे रोग और कीट का प्रकोप हो सकता है. इससे फसलों को नुकसान हो सकता है. झारखंड के किसानों को इस नुकसान से बचाने के लिए मौसम विभाग की तरफ से सलाह जारी किया जाता है. इसका पालन करके किसान फसलों को नुकसान से बचा सकते हैं और अच्छी उपज हासिल कर सकते हैं.
दक्षिण पूर्वी पठारी क्षेत्र के लिए सलाह जारी करते हुए कहा गया है कि सब्जियों, दलहनी और तिलहनी फसलों में ख़स्ता फफूंदी रोग का प्रकोप हो सकता है. इसे नियंत्रित करने के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्लयूपी को 1 ग्राम या सल्फेक्स गोल्ड 80 डब्ल्यूडीजी को 1 ग्राम या रिडोमिल गोल्ड एमजेड 68 डब्ल्यू जी 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके अलावा पाले के प्रति संवेदनशील फसल जैसे सरसों और आलू की फसलों पर थायोयूरिया को 500 ग्राम प्रति 1000 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें. चना, मसूर, लता वाली सब्जियों के अलावा बैंगन, शिमला मिर्च और टमाटर में फूल आने से पहले या फूल आने की अवस्था में दवाओं का छिड़काव करें.
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झारखंड के मध्य और उत्तर पूर्वी पठारी क्षेत्र के लिए कृषि सलाह जारी करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा है कि इन क्षेत्रों में गेहूं की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए, मेटसल्फ्यूरान को 8 ग्राम प्रति 150 लीटर (प्रति एकड़ के लिए) के साथ मिलाकर छिड़काव करें. इसके साथ ही नियमित अंतराल पर खेंतों की सिंचाई करते रहें और खेत में पर्याप्त नमीं बनाएं रखें. इसके साथ ही खेत में यूरिया 22 किग्रा प्रति एकड़ की दर से डालें. सरसों और चना जैसी संवेदनशील फसलों को ठंड से बचाने के लिए थायोयूरिया 500 पीपीएम को 1000 लीटर पानी और घुलशीन सल्फर 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें.
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पश्चिमी पठारी क्षेत्र में इस समय मे हो रहे तापमान में हो रहे बदलाव के कारण फसलों में डायमंड बैक मोथ के संक्रमण होने की संभावना है. इससे बचाव के लिए स्पाइनोसैड 45 एससी को 0.5 मिली प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें. इसके साथ ही अगेली और पछेती आलू की फसलों में झुलसा रोग होने की संभावना बनी रहती है. इसके बचाव के लिए ध्यान दें.
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