हरियाणा के करनाल जिले में आलू प्रौद्योगिकी केंद्र (पीटीसी) आलू की एक बेहतरीन किस्म पर काम कर रहा है. कहा जा रहा है कि पीटीसी हाई तकनीक की मदद से विकसित इस किस्म को इस महीने के अंत तक लॉन्च कर सकता है. इस किस्म में जिंक और आयरन प्रचूर मात्रा में रहेगा. सबसे बड़ी बात यह है कि इसका स्वाद भी सामान्य आलू से बेहतर होगा. वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि इस किस्म को उगाने के लिए किसानों को खर्च भी कम करने होंगे. क्योंकि इसकी खेती में कम सिंचाई और उर्वरक की जरूरत पड़ती है.
दरअसल, नई किस्म के आलू के कंद छोटे होते हैं. इसलिए इसे मिनी आलू भी कह सकते हैं. खास बात यह है कि इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. यानी यह किस्म झुलसा रोग को असानी से सह सकती है. एक्सपर्ट की माने तो इस मिनी कंद का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाले आलू के उत्पादन के लिए किया जाता है. इस किस्म खेती एरोपोनिक्स तकनीक की मदद से भी की जा सकती है. एरोपोनिक खेती एक मिट्टी-रहित कृषि तकनीक है, जो पानी और अन्य संसाधनों के सीमित उपयोग के साथ तेजी से अधिक फसलें उगाती है.
ये भी पढ़ें- विदेशी फलों की खेती से मालामाल हुआ UP का ये किसान, लाखों में कमाई, पढ़िए Success Story
करनाल में पीटीसी, शामगढ़ के विषय वस्तु विशेषज्ञ, जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस नई किस्म का नाम कुफरी उदय रखा गया है. इस नई किस्म के आलू के कंद छोटे होते हैं. इसे विशेष रूप से उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए तैयार किया गया है. ऐसे में यह किस्म किसानों के लिए वरदान साबित होगी. ऐसे पीटीसी करनाल का परिसर 45 एकड़ में फैला हुआ है, जिसके दो उप-केंद्र पानीपत और कुरुक्षेत्र में हैं. सरकारी संस्थान पीटीसी में स्थापित एयरोपोनिक्स सुविधा देश की सबसे बड़ी सुविधाओं में से एक है.
जितेंद्र सिंह ने कहा कि शिमला केंद्र से प्राप्त कल्चर ट्यूबों का सूक्ष्म प्रसार करनाल केंद्र में किया जाता है. उन्होंने कहा कि हम इन कल्चर ट्यूबों को अपनी टिशू कल्चर लैब में लाते हैं. फिर इन्हें आलू के बीज के उच्च गुणवत्ता वाले मिनी कंद के उत्पादन के लिए एरोपोनिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग करके गुणा किया जाता है.
ये भी पढ़ें- वैज्ञानिकों ने जारी की चेतावनी, गेहूं की फसल में लग सकती है ये गंभीर बीमारी, पैदावार भी होगी प्रभावित
उन्होंने कहा कि एरोपोनिक्स तकनीक में प्रति पौधे में आलू के कई कंद बनते हैं. हम उनके आकार को भी नियंत्रित कर सकते हैं. सिंह ने कहा कि अगर हम चाहें तो तीन ग्राम, पांच ग्राम, सात ग्राम तक के आलू पैदा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि हम दैनिक आधार पर इसकी कटाई कर सकते हैं, जो कि मिट्टी के माध्यम में संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि ये शुरुआती पीढ़ी के आलू हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today