10 लाख की नौकरी से तौबा, अब खेती में 100 लोगों को रोजगार दे रही छत्तीसगढ़ की ये बेटी

10 लाख की नौकरी से तौबा, अब खेती में 100 लोगों को रोजगार दे रही छत्तीसगढ़ की ये बेटी

ये कहानी छत्तीसगढ़ की दो बेटियों की है. एक का नाम स्मारिका तो दूसरी का नाम वल्लरी है. स्मारिका ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और 10 लाख सालाना की नौकरी करती थीं. वल्लरी ने एमटेक किया है. दोनों अब खेती में अपने भविष्य संवार रही हैं. स्मारिका ने 100 लोगों को रोजगार दिया है तो वल्लरी कई महिलाओं का सहारा बनी हैं.

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10 लाख की नौकरी से तौबा, अब खेती में 100 लोगों को रोजगार दे रही छत्तीसगढ़ की ये बेटीछत्तीसगढ़ की महिलाएं खेती-बाड़ी में नए रिकॉर्ड बना रही हैं (फोटो-ICAR)

नौकरी ही क्यों, बेटियां अब खेती में भी वैसा ही वर्चस्व कायम कर रही हैं, जितना पुरुष समाज करता है. भारत की खेती में हमेशा से महिलाओं का योगदान अधिक रहा है. लेकिन आजकल इसमें एक और विशेषता जुड़ती जा रही है. अब वैसी लड़कियां भी खेती में किस्मत आजमा रही हैं जो नौकरी में अच्छी कमाई करती हैं. आज इसी कड़ी में हम छत्तीसगढ़ की दो बेटियों की बात करेंगे जिनकी उम्र 30 के आसपास है, जो नौकरी में अच्छा कर रही थीं. पर अब खेती को अपनी कमाई का जरिया बनाया है. बड़ी बात ये कि ऐसी लड़कियां कई लोगों को रोजगार दे रही हैं.

सबसे पहले धमतरी के गांव चरमुड़िया की बेटी स्मारिका की. स्मारिका ने कंप्यूटर साइंस में बीई की पढ़ाई की, फिर एमबीए किया. पढ़ाई के नौकरी और अच्छी कमाई की आस थी. सो, एक मल्टीनेशनल कंपनी से जुड़ गईं. स्मारिका को सालाना 10 लाख के पैकेज वाली नौकरी मिली. 34 साल की स्मारिका की जिंदगी सही ढंग से चलने लगी. स्मारिका के पिता का नाम दुर्गेश है जिनका 2020 में लीवर ट्रांसप्लांट हुआ था. ऑपरेशन के बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी.

स्मारिका और वल्लरी की कहानी

अब स्मारिका के सामने दो प्रश्न खड़े थे. एक तो नौकरी करें या नहीं. दूसरा, पिता की तबीयत खराब होने के बाद 23 एकड़ में फैली खेती का क्या होगा और उसमें काम करने वाले 100 मजदूरों की जिंदगी कैसे चलती. इन दोनों में दूसरा प्रश्न स्मारिका को वाजिब लगा और उसने खेती को प्राथमिकता देने का मन बना लिया. स्मारिका ने नौकरी को ना कहा और खेती में लग गईं. पिता को खेती करते देखा था, इसलिए सीखने में दिक्कत नहीं आई. स्मारिका आज कई तरह की सब्जियों की खेती करती हैं. दिल्ली, यूपी, आंध्र प्रदेश, बिहार और ओडिशा तक में सब्जियों की सप्लाई की जाती है. स्मारिका विदेश में भी सब्जी भेजने की तैयारी कर रही हैं.

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दूसरी कहानी महासमुंद के कमरौद गांव की रहने वाली वल्लरी की है. वल्लरी ने छह साल पहले 15 एकड़ से खेती शुरू की थी. आज स्थिति ये है कि वल्लरी तीन गांवों में खेती कर रही हैं. लोगों को यह बात सुनकर हैरानी होती है कि वल्लरी ने एमटेक करने के बाद खेती को अपना पेशा बनाया. कमरौद के 24 एकड़ खेत में वे मिर्च, अमरूद, बांस, पपीता, नारियल और स्ट्रॉबेरी की खेती कर रही हैं. वल्लरी के पिता का नाम ऋषि है जो शुरू से खेती करते रहे हैं.

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वल्लरी ने अपने पिता से ही खेती सीखी है. आज स्थिति ये है कि महासमुंद के हर गांव का महिला समूह वल्लरी से खेती के तरीके सीखता है और उस पर अमल करता है. वल्लरी को आईजीकेवी का मेंबर बनाया गया है. खेती में नई सफलता पाने के लिए वल्लरी तरह-तरह की स्टडी करती हैं और उसमें कुछ नया सीख कर अपनी खेती में अप्लाई करती हैं. इससे उन्हें और भी फायदा होता है.

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