जो किसान पहले जीरा और धनिया की खेती करते थे, वे अब अरंडी की फसल लगाने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं. व्यापार और उद्योग सूत्रों ने बताया कि इस साल अरंडी की बुवाई का क्षेत्रफल बढ़ने की संभावना है. जीरा छोड़कर किसान अरंडी की ओर इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि इस साल अरंडी की कीमतें रिकॉर्ड उंचाई पर हैं. अरंडी की कीमतें इससे पहले कभी इतनी ऊंची नहीं रहीं. AMIC के अनुसार, 2024-25 में अरंडी का रकबा 2023-24 के 10.41 लाख हेक्टेयर से घटकर 8.28 लाख हेक्टेयर रह जाएगा. इस मामले में गुजरात 5.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के साथ टॉप पर है, उसके बाद राजस्थान 1.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के साथ दूसरे स्थान पर है.
इरोड-बेस्ड फूड इंडिया लिमिटेड के निदेशक अंकित अग्रवाल ने इसको लेकर कहा कि जिन किसानों ने पिछले साल जीरा और धनिया बोया था, वे इस साल अरंडी की खेती की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि कीमतें ऊंचे स्तर पर हैं, जो किसानों ने पहले कभी नहीं देखा था." अंग्रेजी अखबार 'बिजनेस लाइन' में छपी एक रिपोर्ट में एग्रीवॉच के वरिष्ठ अनुसंधान विश्लेषक, बिप्लब सरमा बताते हैं कि आगामी रबी सीजन में अरंडी की बुवाई जीरे के रकबे को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि अरंडी की आकर्षक कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर होने से किसान रकबा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि गुजरात में बुवाई शुरू हो चुकी है और इस सीजन में इसके 15-18 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है.
श्रीजी एग्री कमोडिटी प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ जगदीप ग्रेवाल कहते हैं कि जीरे की तुलना में अरंडी की खेती का रकबा बढ़ने की संभावना है. किसान अरंडी की खेती की ओर रुख करेंगे क्योंकि अरंडी की कीमतें ज़्यादा हैं और खेती की लागत भी कम है. कृषि मंत्रालय की शाखा, एगमार्कनेट (Agmarknet) के अनुसार, अरंडी की कीमतें एक साल पहले की तुलना में कम से कम ₹500 प्रति क्विंटल बढ़कर लगभग ₹6,500 प्रति क्विंटल हो गई हैं. इसके विपरीत, जीरे की कीमतें एक साल पहले के लगभग ₹25,000 प्रति क्विंटल के मुकाबले घटकर लगभग ₹15,000 प्रति क्विंटल रह गई हैं.
कृषि मंत्रालय ने सोमवार को जो आंकड़े जारी किए उसके अनुसार, 4 अगस्त तक अरंडी के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल 1.79 लाख हेक्टेयर (lh) बढ़ा है, जबकि एक साल पहले यह 1.29 लाख हेक्टेयर बढ़ा था. अरंडी के अंतर्गत आने वाला सामान्य क्षेत्रफल 9.65 लाख हेक्टेयर होता है. बता दें कि जीरे की बुवाई अक्टूबर के बाद ही शुरू होती है. हालांकि कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2024-25 में अरंडी का उत्पादन 2023-24 के 19.59 लाख टन की तुलना में कम होकर 17.30 लाख टन रह सकता है.
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने कहा कि अगले कुछ महीनों में अरंडी की कीमतें मज़बूत रहने की उम्मीद है. मेहता की मानें को इसका स्टॉक कम रह सकता है, जिससे कीमतें बढ़ी ही रहेंगी. अंकित अग्रवाल ने कहा कि बुवाई के रुझान में बदलाव के कारण धनिया की कीमतें दो महीने पहले के 6,700 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 7,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं.
वहीं बिप्लब सरमा का कहना है कि मेहसाणा, बनासकांठा और पाटन क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों में अरंडी और जीरा के बीच एक ही भूमि के लिए प्रतिस्पर्धा रहती है. इसलिए अरंडी की ओर रुझान बढ़ने से जीरे का रकबा कम हो सकता है, जिससे मध्यम से लंबी अवधि में इसकी भी कीमतों में उछाल आ सकता है. जगदीप ग्रेवाल ने भी यही कहा कि गुजरात में ऐसे क्षेत्र हैं जहां दोनों फसलें एक ही भूमि के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं. हालांकि राजस्थान में जीरा और अरंडी की खेती अलग-अलग जमीन पर होती है.
बताया जा रहा है कि कटाई के समय यानी दिसंबर 2025 से जनवरी 2026 तक, अरंडी की कीमतें संभवतः ₹5,500 से ₹5,700 के बीच रहेंगी. सरमा ने कहा कि गुजरात की ऊंझा मंडी (कृषि टर्मिनल बाजार) में 2025 की पहली छमाही के दौरान जीरे की आवक 22.93 बोरे (50 किलोग्राम प्रति बैग) थी, जो एक साल पहले की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत कम है. हालांकि, मार्च की तुलना में अप्रैल में जीरे का निर्यात 12 प्रतिशत बढ़कर 19,720 टन हो गया, लेकिन यह पिछले साल की तुलना में 90 प्रतिशत से भी कम है.
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