
खेती-किसानी से जुड़ी यह खबर सासाराम से है. रोहतास जिला को धान का कटोरा कहा जाता है और अब यहां के सबसे प्रसिद्ध सोनाचूर चावल की वैश्विक पहचान बनने वाली है. रोहतास जिला प्रशासन इस चावल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के प्रयास में है. इसके लिए जिला प्रशासन ने ज्योग्राफिकल आईडेंटिफिकेशन टैग अर्थात "जीआई टैग" (GI Tag) के लिए अप्लाई किया है. अगर सब कुछ सामान्य रहा तो आने वाले समय में रोहतास जिले का यह खुशबूदार चावल दुनिया भर के लोगों की थाली में होगा.
बता दें कि इसको लेकर बिक्रमगंज के वनस्पति अनुसंधान इकाई, बिहार कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर, कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण और स्थानीय किसानों का संगठन संयुक्त रूप से प्रयास कर रहा है. सोनाचूर धान उत्पादक संघ से जुड़े किसानों ने इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. जीआई टैग किसी खास क्षेत्र के खास उत्पाद को दिया जाता है. यह टैग बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत मान्यता प्राप्त होता है. इससे संबंधित उत्पाद का इंटरनेशनल बाजार में विशेष पहचान बनती है.
रोहतास जिला में सोनाचूर चावल की बंपर खेती होती है. इस चावल के दाने छोटे-छोटे और काफी खुशबूदार होते हैं. बड़ी बात यह है कि यह चावल सुपाच्य भी है. फिलहाल किसान इसे मात्र पांच हजार से छह हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजार में बेच रहे हैं. अब आप समझ सकते हैं कि जब इस चावल को जीआई टैग मिल जाएगा तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कितनी पहचान बनेगी. इसका असर यह होगा कि किसानों को उसके उत्पादन की बढ़िया कीमत मिलेगी. साथ ही किसानों को सोनाचूर धान के उत्पादन में भी मदद मिलेगी.
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इस बारे में रोहतास की डीएम उदिता सिंह ने बताया कि इसको लेकर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. जिला प्रशासन ने सोनाचूर को GI टैग के लिए संबंधित विभाग से मिलकर अनुशंसा की है. जिला का कृषि विभाग भी इसको लेकर प्रयासरत है. अगर सबकुछ सही रहा तो रोहतास के सोनाचूर चावल को जीआई टैग मिल जाएगा जिससे किसानों को बहुत फायदा होगा. जीआई टैग मिलने से इस चावल के निर्यात में तेजी आएगी जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी. सरकार भी किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत है जिसे जीआई टैग से बड़ी मदद मिलेगी.
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सोनाचूर चावल की विशेषता की बात करें तो यह छोटे दाने वाला चावल बेहद सुगंधित चावल है और यह अपने स्वाद और मीठे, मुलायम और सुगंधित चूड़ा (पीटा हुआ चावल) के लिए मशहूर है. इसे पोहा भी बोला जाता है और आम बोलचाल में इसे च्यूरा या चूड़ा कहते हैं जिसे दही के साथ खाया जाता है. सूनाचूर का पका हुआ चावल फूला हुआ, चिपचिपा नहीं, मीठा और आसानी से पचने वाला होता है और इसकी खुशबू पॉपकॉर्न जैसी होती है. यही वजह है कि इसकी बहुत डिमांड है. इसी मांग को देखते हुए इसके लिए जीआई टैक की वकालत की जा रही है.(रंजन कुमार का इनपुट)
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