महाराष्ट्र की अंगूर राजधानी नासिक इस साल अपने सबसे खराब मौसमी संकट का सामना कर रही है. मई से लगातार हो रही बारिश ने पूरे जिले के अंगूर बागानों को भारी नुकसान पहुंचाया है. किसानों का अनुमान है कि इस साल उत्पादन में 40 परसेंट तक गिरावट आ सकती है और फसल की कटाई में भी देरी तय मानी जा रही है.
डिंडोरी के एक अंगूर उत्पादक राजेश शिंदे के अनुसार, “लंबी बारिश से बागों में जलभराव हो गया है और बेलों का विकास रुक गया है. प्रति एकड़ 10 से 12 टन तक अंगूर का नुकसान हो सकता है.” वे बताते हैं कि बारिश के कारण अंगूर के फूल कम खिले हैं, और गुच्छे समय से पहले गिर गए हैं, जिससे उत्पादन और क्वालिटी दोनों पर विपरीत असर पड़ा है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि नमी और लगातार बारिश के चलते फफूंद संक्रमण और असमान फलन की आशंका है, जिससे नासिक के अंगूरों की निर्यात क्वालिटी प्रभावित हो सकती है. वर्तमान में नासिक जिले में 30 परसेंट नुकसान का शुरुआती आकलन किया गया है, लेकिन किसानों के अनुसार असली स्थिति और भी गंभीर हो सकती है.
यह पहला मौका नहीं है जब नासिक और अन्य अंगूर उत्पादक जिलों को बेमौसम बारिश का सामना करना पड़ा है. इस साल लगभग 15 परसेंट अंगूर बागों में फल नहीं लगे, सिर्फ बेलों की वृद्धि ही देखने को मिल रही है — जो निर्यात उद्योग के लिए खतरे की घंटी है.
आगामी फसल कटाई को लेकर भारी अनिश्चितता बनी हुई है, जिससे घरेलू बाजार और निर्यात दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है. एपीडा (APEDA) के अनुसार, भारत के प्रमुख अंगूर उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, और मिज़ोरम शामिल हैं, जिनमें से महाराष्ट्र अकेले 67 फीसद अंगूर उत्पादन के साथ सबसे आगे है.
नासिक जिला अंगूर उत्पादन में अग्रणी क्षेत्र है और वहां स्थित बड़ी संख्या में वाइनरी के कारण इसे "भारत की वाइन राजधानी" भी कहा जाता है. अंगूर की कटाई आमतौर पर जनवरी में शुरू होती है और मध्य अप्रैल तक चलती है. महाराष्ट्र में देश में सबसे अधिक पैदावार निकलती है जिस वजह से बहुतायत में किसान फसल नुकसान से परेशान हैं.
भारत में 20 से ज्यादा किस्मों की खेती की जाती है. हालांकि, केवल एक दर्जन ही व्यावसायिक रूप से उगाई जाती हैं. रंग और बीजों के आधार पर इन्हें 4 श्रेणियों में बांटा जा सकता है- रंगीन बीज वाली, रंगीन बीज रहित, सफेद बीज वाली और सफेद बीज रहित. वर्तमान में, थॉम्पसन सीडलेस अंगूर की प्रमुख किस्म है जो अपने क्लोनों के साथ 78.96 परसेंट क्षेत्र पर कब्जा करती है.
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