गेहूं के लिए रस्ट रोग बहुत खतरनाक होता हैभारत में धान के बाद गेहूं सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है, जिसका वार्षिक उत्पादन लगभग 1150 लाख टन और रकबा करीब 328 लाख हेक्टेयर है. लेकिन इस भारी-भरकम उत्पादन को सबसे बड़ी चुनौती दे रही है—गेहूं की रस्ट बीमारियां, जो न केवल भारत बल्कि दुनिया के अधिकतर गेहूं उगाने वाले देशों में खतरा पैदा करती हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, स्टेम रस्ट और स्ट्राइप रस्ट जैसे रोग खेतों में 100% तक फसल का नुकसान कर सकते हैं, जबकि पत्ती का रस्ट अनुकूल मौसम में 45–50% तक नुकसान पहुंचा सकता है.
स्टेम रस्ट (काला रस्ट)
पत्ती का रस्ट (भूरा रस्ट)
स्टेम रस्ट: लक्षण और नुकसान
स्टेम रस्ट को इतिहास में गेहूं का सबसे विनाशकारी रोग माना गया है.
इसके लक्षण:
पत्ती का रस्ट: भारत में सबसे आम बीमारी
पत्ती का रस्ट आज भारत की सबसे गंभीर गेहूं बीमारी है.
मुख्य लक्षण:
लगातार गर्म और नम मौसम के कारण बीमारी फैलती है. खेत में अधिक नाइट्रोजन प्रयोग होने पर रस्ट की बीमारी फैलती है. किसान अगर साधारण किस्में लगाते हैं, रस्ट-रेजिस्टेंट किस्में नहीं लगाते हैं तो बीमारी बढ़ने के चांस अधिक होते हैं. देर से बुवाई करने पर भी रस्ट की बीमारी फैलती है.
संक्रमित अवशेषों को खेत में छोड़ देना भी रस्ट बीमारी को न्योता देने जैसा है. पहाड़ी क्षेत्रों से आने वाली हवाओं से भी गेहूं पर स्पोर का प्रसार होता है जिससे रस्ट की बीमारी बढ़ती है.
रस्ट-प्रतिरोधी किस्में अपनाएं-ICAR और कृषि विश्वविद्यालय हर साल नई रजिस्टेंट किस्में सुझाते हैं. किसानों को वैसी किस्मों को ही लगाना चाहिए.
विशेषज्ञों का कहना है कि रस्ट रोगों का समय पर पता न लगाया जाए तो नुकसान अचानक और बहुत तेजी से बढ़ता है. क्योंकि ये फंगस हवा के जरिए फैलते हैं, इसलिए एक गांव में आया संक्रमण कुछ ही दिनों में सैकड़ों एकड़ में फैल सकता है.
भारत जैसे बड़े गेहूं उत्पादक देश के लिए रस्ट रोग एक गंभीर आर्थिक और खाद्य सुरक्षा का खतरा है. अगर किसान समय पर निगरानी, रजिस्टेंट किस्में, और फंगिसाइड मैनेजमेंट अपनाते हैं, तो बड़े नुकसानों से बचा जा सकता है. सरकार और ICAR पहले ही निगरानी तेज करने की सलाह दे चुके हैं ताकि 100% संभावित नुकसान को रोका जा सके.
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