देश ही नहीं विदेशों तक डॉ. मनोज शर्मा की एक खास पहचान है. झींगा से जुड़ी ज्यादातर सेमिनार और वर्कशॉप में उन्हें बोलने के लिए बुलाया जाता है. यहां तक की जब ईरान में झींगा पालन में बीमारी फैल रही थी तो उस वक्त भी डॉ. मनोज को बुलाया गया था. झींगा पालन को बढ़ाने के साथ ही अब डॉ. मनोज झींगा के लिए लोकल मार्केट तैयार करने पर जोर दे रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसा होने से झींगा एक्सपोर्ट की बहुत सारी चुनौतियां खत्म हो जाएंगी. झींगा के लिए डॉ. मनोज की इसी लगन को देखते हुए वर्ल्ड एक्वाकल्चर सोसाइटी उन्हें सम्मानित करने जा रही है.
26 से 30 अगस्त तक कोपेनहेगन, डेनमार्क में उन्हें पुरस्कार दिया जाएगा. इससे पहले फिशरीज टेक्नोक्रेट्स फोरम (एफटीएफ) उन्हें प्रतिष्ठित के.चिदंबरम मेमोरियल एनुअल अवार्ड-2022 से सम्मानित कर चुका है. डॉ. मनोज ने बड़ी संख्या में एक्वाप्रेन्योर और युवा स्नातकों को झींगा उत्पादन और झींगा पालन करने के लिए प्रेरित किया है. सोसाइटी का मानना है कि मनोज के झींगा पालन और बाजार संबंधी उनके अनुभव इस सेक्टर को आगे ले जाने में मदद करेंगे. साथ ही उनका स्थानीय और वैश्विक योगदान मददगार साबित हो रहा है.
ये भी पढ़ें: Dairy Milk: अब AI तकनीक से घटेगी दूध की लागत और पशुपालकों का बढ़ेगा मुनाफा, जानें कैसे
मूल रूप से महाराष्ट्र निवासी डॉ. मनोज अब गुजरात में रहकर देशभर में झींगा पालन को बढ़ावा दे रहे हैं. साथ ही झींगा सेक्टर में आने वाली हर तरह की परेशानी को दूर करने में झींगा पालकों की मदद भी करते हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ और खास बातें.
मुम्बई की यूनिवर्सिटी से एमएफएससी फिशरीज स्नातक और फिशरीज में डॉक्टरेट (पीएचडी).
1994 में पहली बार गुजरात के ओलपाड की नमक प्रभावित बंजर जमीन (खारी जमीन) में चार झींगा तालाब बनाए.
चार तालाब से आज गुजरात में 6000 से अधिक तालाब हो गए हैं. इसी नमक प्रभावित बंजर जमीन को उत्पादक जमीन में बदलकर 1.5 लाख तटीय मछुआरों और ग्रामीणों को रोजगार का मौका दिया.
डॉ. मनोज शर्मा ने कुछ ही साल में नमक प्रभावित जमीन को झींगा उत्पादन में बदल दिया.
आज गुजरात में झींगा पालन सेक्टर हर साल 2000 करोड़ रुपये मूल्य के झींगे का उत्पादन करता है।
उनके काम ने खासतौर पर कोस्टल एरिया में रिवर्स माइग्रेशन को बढ़ावा दिया है.
झींगा पालन की एक हेक्टेयर भूमि लगभग 15 लोगों को रोजगार देती है.
डॉ. मनोज की कोशिश से दक्षिण गुजरात में 10 हजार से ज्यादा ओडिशा के आदिवासी समुदाय को रोजगार मिला है.
लोकल डिमांड को बढ़ाने के लिए मनोज झींगा की फूड चेन चला रहे हैं.
नॉर्थ इंडिया में झींगा पालन बढ़ाने के लिए मनोज की सहायता ली जाती है.
बीते साल मई में डॉ. मनोज शर्मा को ईरान बुलाया गया था. गौरतलब रहे ईरान के दो बड़े इलाके बुशर और बंदर अब्बास में बड़े पैमाने पर झींगा पालन किया जाता है. एक-एक हेक्टेयर के तालाब में किसान झींगा पालते हैं. लेकिन अर्ली मोर्टेलिटी सिंड्रोम (ईएमएस) के चलते ईरान में झींगा मर रहा था. इसी दौरान मनोज शर्मा को ईरान बुलाया गया था. अपने आठ दिन के दौरे में डॉ. मनोज ने उन्हें झींगा पालन से जुड़े कई टिप्स दिए. साथ ही झींगा की मृत्युी दर को भी रोका. इसी के चलते ईरान की ओर से उन्हेंक सम्मानित भी किया गया था. साल 2014 और 2017 में भी डॉ. मनोज ईरान में झींगा पालन के टिप्स दे चुके हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today