Equine: गधे-घोड़ों में खास जांच के लिए भारत की पहली लैब को मिला WOAH से दर्जा, पढ़ें डिटेल

Equine: गधे-घोड़ों में खास जांच के लिए भारत की पहली लैब को मिला WOAH से दर्जा, पढ़ें डिटेल

मशीनीकरण के इस दौर में गधे-घोड़े और खच्चरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आज पहाड़ी और ठंडे इलाकों में कुछ काम ऐसे हैं जो इन पशुओं के बिना मुमकिन नहीं होते हैं. कारोबार में इस्तेमाल के अलावा खरीद-फरोख्त का ही करोड़ों रुपये का कारोबार होता है. 

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Equine: गधे-घोड़ों में खास जांच के लिए भारत की पहली लैब को मिला WOAH से दर्जा, पढ़ें डिटेलक्यों मनाया जाता है गधा दिवस

गधे-घोड़े और खच्चर एक नहीं कई-कई काम आते हैं. खासतौर से घोड़ों में हर एक काम के लिए नस्ल पहले से चिन्हित है. जैसे पोलो खेल में इस्तेमाल होने वाले घोड़े अलग नस्ल के होते हैं, जबकि ऑब्सटिकल में अपनी फुर्ती दिखाने वाले घोड़े अलग ही एक खास नस्ल के होते हैं. एक्सपर्ट की मानें तो गधे-घोड़े और खच्चरों की खरीद-फरोख्त का करोड़ों रुपये का कारोबार है. लेकिन जैसे ही कुछ खास बीमारियों की खबर फैलती है तो ये कारोबार पूरी तरह से ठप्प हो जाता है. और परेशान करने वाली बात ये है कि ट्रेड के दौरान हर किसी लैब की रिपोर्ट मानी नहीं जाती है. 

लेकिन अब इस परेशानी से छुटकारा मिल गया है. राष्ट्रीय इक्विन अनुसंधान केंद्र, हिसार (ICAR-NRC इक्विन) को वर्ल्ड ऑर्गेनाईजेशन ऑफ एनिमल हैल्थ (WOAH) ने मान्यता दे दी है. अब हिसार की ये लैब गधे-घोड़े और खच्चर में होने वाली पिरोप्लाजमोसिस बीमारी की जांच कर सकेगी. इस बीमारी पर रिसर्च भी होगी. ये बीमारी तीनों ही तरह के जानवरों के लिए बहुत ही खतरनाक मानी जाती है. 

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जानें क्या है गधे-घोड़ों की पिरोप्लाजमोसिस बीमारी

इक्वाइन पिरोप्लाजमोसिस टिक-जनित प्रोटोजोअन परजीवी बेबेसिया कैबली और थेलेरिया इक्वी की वजह से होने वाली बीमारी है. ये खासतौर पर घोड़ों, गधों, खच्चरों और जेबरा पर अटैक करती है. इस बीमारी का पशुओं की हैल्थ पर तो गंभीर खतरा पैदा होता ही है, साथ ही ट्रेड रुक जाने से आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. भारत में इस बीमारी का सीरो प्रिवलेंस रेट 15 से 25 फीसद है. जबकि कुछ उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में 40 फीसद तक पहुंच जाती है. इसका असर ये होता है कि पशुओं की उत्पादकता में कमी, स्वास्थ्य में गिरावट और घोड़ों की आवाजाही और निर्यात पर प्रतिबंध लग जाता है.

गौरतलब रहे कठोर नियंत्रण और जल्द इलाज की जरूरत को समझते हुए डीएएचडी ने एनआरसी इक्विन को अश्व रोगों के लिए भारत के राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र के रूप में प्राथमिकता दी और संस्थान ने इक्विन पाइरोप्लाज्मोसिस के लिए अत्याधुनिक इलाज वाले उपकरण विकसित किए. दोबारा से संयोजक एंटीजन पर आधारित एलिसा, अप्रत्यक्ष फ्लोरोसेंट एंटीबॉडी टेस्ट, एंटीबॉडी का पता लगाने और रक्त स्मीयर टेस्ट के लिए प्रतिस्पर्धी एलिसा, एमएएसपी इन-विट्रो कल्चर सिस्टम और एंटीजन का पता लगाने के लिए पीसीआर विकसित किया.

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WOAH से मान्यता मिलने वाली ये चौथी लैब 

WOAH से लैब की मान्यता लेने वाली एनआरसी इक्विन भारत के पशुपालन सेक्टर की चौथी लैब है. इससे पहले पशु चिकित्सा महाविद्यालय, कर्नाटक पशु चिकित्सा पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बैंगलोर को रेबीज, राष्ट्रीय पशु चिकित्सा महामारी विज्ञान और रोग सूचना विज्ञान संस्थान, बैंगलोर को पीपीआर और लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी की जांच के लिए WOAH से मान्यता मिल चुकी है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो 20वीं पशुधन गणना के मुताबिक भारत में करीब 5.5 लाख अश्व (घोड़े, टट्टू, गधे, खच्चर) हैं. इस आबादी में लगभग 3.5 लाख घोड़े और टट्टू, 1.20 लाख गधे और 80 हजार खच्चर शामिल हैं. ये सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में हैं. 
 

 

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