Hilsa Fish: यूं ही नहीं मछलियों का राजा कहलाती है हिल्सा, मंगलसूत्र बेचकर भी खाने को तैयार...

Hilsa Fish: यूं ही नहीं मछलियों का राजा कहलाती है हिल्सा, मंगलसूत्र बेचकर भी खाने को तैयार...

Hilsa Fish: हिल्सा ना सिर्फ पाक परंपरा का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है बल्कि इसका धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में भी बहुत महत्व रहा है. वहीं हिल्सा मछली, मछलियों का राजा कहलाती है. इसे लेकर आंध्र प्रदेश में कहावत प्रसिद्ध है – ‘पुस्तेलु अम्मि आयीन पुलसा तिनोच्चु’ यानी पुलसा खाने के लिए अगर मंगलसूत्र भी बेचना पड़े तो भी ठीक! ऐसे में आइए, आपको बताते हैं हिल्सा से जुड़े कुछ दिलचस्प सांस्कृतिक, भौगोलिक तथ्य-

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Hilsa Fish: यूं ही नहीं मछलियों का राजा कहलाती है हिल्सा, मंगलसूत्र बेचकर भी खाने को तैयार...बांग्लादेश में होती है सबसे ज्यादा हिलसा मछली

बारिश का मौसम यानी मॉनसून का हमारे देश की संस्कृति से बहुत अभिन्न रिश्ता रहा है. जहां एक अंचल धान की रोपाई और अन्य फसलों की बुआई के दौरान सावन के गीत, कजरी, मल्हार और बिहाग से गूंजता है तो नयी-नवेली हरियाली के बीच सावन के झूलों का मज़ा लेती, गीत गाती महिलाएं भी मन मोह लेती हैं. समय के साथ साथ बाढ़, विस्थापन, रोग वगेरह की त्रासदी भी मॉनसून के दौरान जीवन शैली का हिस्सा बन गई है. ये सब हमारे लोक गीतों में प्रतिध्वनित होते रहते हैं. बदलते वक्त के साथ मॉनसून के गीत बदले हैं, हमारे सरोकार बदले हैं, कुछ जीवन शैली भी. लेकिन एक चीज़ है जिसकी अहमियत हमारी संस्कृति और रसोई में कम नहीं हुई है और वह है- हिल्सा मछली. 

हिल्सा ना सिर्फ पाक परंपरा का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है बल्कि इसका धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में भी बहुत महत्व रहा है. माना जाता है कि गुप्त और मौर्य काल में भी हिलसा को समृद्धि का प्रतीक माना जाता था और यह एक विशिष्ट पकवान के तौर पर शाही रसोइयों की शोभा बढ़ती थी. भोजन में हिल्सा मछली की अहमियत का इस बात से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसे लेकर आंध्र प्रदेश में कहावत प्रसिद्ध है – ‘पुस्तेलु अम्मि आयीन पुलसा तिनोच्चु’ यानी पुलसा खाने के लिए अगर मंगलसूत्र भी बेचना पड़े तो भी ठीक! वहीं हिल्सा मछली को ‘माछेर राजा’ यानी मछलियों का राजा कहा जाता है. ऐसे में आइए, आपको बताते हैं हिल्सा से जुड़े कुछ दिलचस्प सांस्कृतिक, भौगोलिक तथ्य-

बांग्लादेश में होती है सबसे ज्यादा हिल्सा मछली

हिल्सा यानी टेनुआलोसा इलिशा भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और बर्मा समेत दुनिया भर के 11 देशों में पाई जाती है. भारत में यह महानदी, चिल्का, गोदावरी, रूपनारायण, हुगली और नर्मदा नदियों में पाई जाती है. लेकिन दुनिया भर की 86 प्रतिशत  हिल्सा मछली बांग्लादेश में ही होती है. हिल्सा बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली भी है और देश की कुल जीडीपी में 1 प्रतिशत योगदान हिलसा उत्पादन का है.

धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल 

बंगाल में हिल्सा को धार्मिक अनुष्ठानों और महोत्सवों के दौरान परोसा जाता है. विवाह के रीति-रिवाजों में भी इसका महत्व रहा है. गाए होलुद के बाद दूल्हे पक्ष की तरफ से दुल्हन को हिल्सा भेंट देने का रिवाज था. लेकिन चूंकि अब भारत में हिल्सा का उत्पादन ना सिर्फ कम हुआ है बल्कि यह बहुत महंगी भी हो गयी है, इसलिए अब रोहू मछली को उपहार में देने का चलन हो गया है, हालांकि बांग्लादेश में अब भी इस अनुष्ठान में हिल्सा को ही भेंट स्वरूप दिया जाता है.

हिल्सा मछली को पकड़ने पर बैन

भारत में हिल्सा के लगातार गिरते उत्पादन के बीच पश्चिम बंगाल सरकार ने 2018 में छोटी हिल्सा मछली को पकड़ने पर बैन लगा दिया था ताकि ये मछली बढ़ सके और इसकी ब्रीडिंग में बढ़ोतरी हो सके. लेकिन अफसोस कि पश्चिम बंगाल इस बैन को उतनी मुस्तैदी से लागू नहीं कर पायी जितना बांग्लादेश की सरकार. नतीजा ये कि दुनिया के हर उस देश में जहां हिलसा होती है, इसका उत्पादन घटा है जबकि बांग्लादेश में इसका उत्पादन बढ़ा है. 

मछलियों का राजा कहलाती है हिल्सा

यूं तो हिल्सा समुद्री मछली है लेकिन ये अपना ज़्यादातर जीवन नदियों और खाड़ी के मीठे पानी में गुजारती है. इसलिए इस मछली में समुद्र और नदी दोनों के पानी का खास स्वाद होता है. तभी तो इसे ‘माछेर राजा’ यानी मछलियों का राजा कहा जाता है. सिंधी लोगों की रसोई में भी हिलसा एक खास जगह रखती है. सिंधी में इसे पल्लो माछी कहा जाता है. सिंध में इसे आलू, प्याज़ और स्थानीय मसालों के साथ पकाया जाता है. 

मंगलसूत्र बेचकर भी खाने को तैयार

आंध्र प्रदेश में हिल्सा को पुलसा कहा जाता है और यह गोदावरी नदी में बस बारिश के कुछ ही दिनों के लिए आती है. आंध्र प्रदेश के भोजन में इसकी अहमियत का इस बात से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस प्रदेश में कहावत प्रसिद्ध है – ‘पुस्तेलु अम्मि आयीन पुलसा तिनोच्चु’ यानी पुलसा खाने के लिए अगर मंगलसूत्र भी बेचना पड़े तो भी ठीक!

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पश्चिम बंगाल में हिल्सा उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि वहां के लोगों में फुटबाल के प्रति दीवानगी. वहां के दो मुख्य फुटबाल क्लब –मोहन बागान और ईस्ट बंगाल बीच होड़ लगी रहती है जीतने की. ऐसा चलन है कि अगर ईस्ट बंगाल क्लब की जीत होती है तो इस क्लब के फैंस खुशी में हिल्सा बनाते हैं और मोहन बागान जीतता है तो इसके सपोर्टर झींगा (प्रौन्स) बनाते हैं.

विलुप्त भी हो सकती है हिल्सा मछली 

बदकिस्मती से, हिलसा की बढ़ती खपत का इसके उत्पादन/ब्रीडिंग पर भी बहुत असर हुआ है. इसके अन्य पर्यावरणीय कारण भी हैं, जिनमें क्लाइमेट चेंज प्रमुख है. अब हालात ये हैं कि अगर हिल्सा का संरक्षण और संख्या बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया गया तो नदियों से समुद्र तक की लंबी यात्रा करने वाली ये अद्भुत रूप से स्वादिष्ट मछली विलुप्त भी हो सकती है.  

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