भारत में गायों की लगभग 50 से ज्यादा मशहूर नस्लें हैं. लेकिन, क्या आपने कभी 'फ्रीजवाल' गाय का नाम सुना है? अगर नहीं तो हम बताते हैं. दरअसल, यह एक सिंथेटिक नस्ल है. जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन आने वाले केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ ने रक्षा मंत्रालय के सहयोग से विकसित किया है. यह कठिन जलवायु परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम है. इस नस्ल की गायें न सिर्फ बीमारियों के प्रति अधिक सहनशील होती हैं बल्कि दूध भी ज्यादा देती हैं. फ्रीजवाल गाय पहले ब्यांत में औसतन 4000 किलोग्राम दूध देती है है. जबकि साहीवाल और गिर जैसी नस्ल की गायें प्रति ब्यांत लगभग 1500 लीटर दूध देती हैं. दूसरी ओर देसी देसी नस्लें 1000 लीटर से कम दूध का उत्पादन करती हैं.
पशु वैज्ञानिक शिवांशु तिवारी, सीबी सिंह, सीवी सिंह, रिपुसुदन और अराधना फुलार के मुताबिक फ्रीजवाल को नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज ने 5 दिसंबर, 2023 को आधिकारिक तौर पर एक नई सिंथेटिक नस्ल के तौर पर रजिस्टर्ड किया था. बहरहाल, अब 16 राज्यों में 20,000 से अधिक फ्रीजवाल पशु हैं. इनमें पंजाब, केरल, महाराष्ट्र एवं उत्तराखंड के सैन्य फार्मों और प्रोजेक्ट साइट पर इनकी अच्छी संख्या है. फ्रीजवाल शांत स्वभाव का पशु है, लेकिन, अधिक दूध उत्पादन क्षमता और कम बीमारी की वजह से यह डेयरी सेक्टर के लिए बेहद अहम है.
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वैज्ञानिकों के अनुसार वयस्क फ्रीजवाल नर का वजन लगभग 445 किलोग्राम और वयस्क मादा का वजन लगभग 412 किलोग्राम होता है. बछड़े का वजन 27.5 और बछिया का 26.5 किलोग्राम तक होता है. पहले ब्यांत की अवधि 36 माह होती है. पहले ब्यांत का औसतन दूध उत्पादन 4000 किलोग्राम है, हालांकि यह 5000-6000 किलोग्राम तक दूध का उत्पादन कर सकती है.
फ्रीजवाल पशुओं में दोनों मूल नस्लों के गुणों का मिश्रण होता है. वे मध्यम से बड़े आकार के होते हैं. उनका रंग काला और सफेद से लेकर लाल-भूरा होता है. इनके पास साहीवाल मवेशियों की गर्मी सहनशीलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी है, जो उन्हें भारत की गर्म जलवायु के लिए उपयुक्त बनाती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने साल 1968 में फ्रीजवाल नामक एक नए हाईब्रिड मवेशी को विकसित करने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसके तहत यूरोपियन गाय की प्रजाति 'होलस्टीन फ्रीजियन' व भारतीय प्रजाति 'साहीवाल' के गुणों को मिलाकर इसे तैयार किया था. यानी यह क्रॉस ब्रीड है. इसलिए इसका नाम 'फ्रीजवाल' पड़ा. यह देश का ऐसा एकमात्र प्रोजेक्ट है जिसके तहत 250 से अधिक बैलों का प्रजनन परीक्षण किया गया था. फ्रीजवाल को दूध उत्पादन में सुधार के मकसद से साल 1987 में पेश किया गया था. इस नस्ल की गायों की दूध उत्पादन अवधि 300 दिन है.
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