Goat Vaccination for Winter पशु कोई भी हो, उसे बदलते मौसम से बचाना बहुत जरूरी हो जाता है. और पशु अगर उत्पादन करने वाला जैसे गाय-भैंस और भेड़-बकरी है तो फिर उसे और ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. हालांकि पशुपालक पशुओं को बदलते मौसम और ठंड से बचाने के लिए अक्टूबर में कुछ जरूरी कदम उठाते हैं. लेकिन गोट एक्सपर्ट का कहना है कि अगर बकरियों को सर्दियों में बीमारी से बचाना है तो अभी से उनका वैक्सीनेशन शुरू करा दें. बकरियों को लगाए जाने वाले कुछ टीके ऐसे हैं जिन्हें अभी लगवाया तो फिर बकरियां पूरी सर्दी हैल्दी रहेंगी.
बकरियों की कुछ ऐसी बीमारी होती हैं जो उन्हें ठंड के मौसम में ही सबसे ज्यादा परेशान करती हैं. ये वो बीमारी हैं जो अगर किसी एक बकरी को हो जाए तो फिर पूरे बाड़े में फैल जाती है. इसी तरह की बीमारियों की रोकथाम के लिए ही बकरियों को डॉक्टर की सलाह पर दो तरह के टीके लगवाए जाते हैं. वहीं मौसम के मुताबिक बकरियों के शेड में बदलाव कर बीमारी से बचाना भी जरूरी हो जाता है.
एनिमल एक्सपर्ट डॉ. इब्ने अली ने किसान तक को बताया कि पीपीआर (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स) बकरियों में होने वाली घातक बीमारी है. इसे बकरियों का प्लेग भी कहा जाता है. ये एक संक्रमित रोग है तो जल्द ही ये दूसरी बकरियों में भी बहुत तेजी से फैलती है. इसके साथ ही इसी मौसम में बकरियों के बीच चेचक भी फैलती है. चेचक के दौरान बकरियों के शरीर पर चकते से बन जाते हैं. इसलिए ये जरूरी है कि सर्दी शुरू होते ही बकरियों को पीपीआर और चेचक का टीका लगवा दिया जाए. अगर पशुपालकों ने अभी तक ये दोनों टीके नहीं लगवाए हैं तो लगवाने में जरा भी देर ना करें. क्योंकि ये बीमारी किसी एक बकरी में हो जाए तो फिर बार्ड की दूसरी बकरियों के बीच तेजी से फैलती है.
डॉ. इब्ने अली बताते हैं कि बकरी में होने वाले प्लेग की पहचान यह है कि बकरी को दस्त लग जाते हैं. निमोनिया होता है और नाक बहने लगती है. तेज बुखार आ जाता है. बड़ी बकरियों में होने के चलते ये बीमारी बच्चों में भी फैलने लगती है. इसी तरह से बकरी को चेचक होने पर निमोनिया होता है और तेज बुखार आने लगता है. बकरी चारा खाना छोड़ देती है. और तो और बच्चे भी दूध पीना कम कर देते हैं.
डॉ. इब्ने अली का कहना है कि बकरी प्लेग-चेचक का सबसे बड़ा उपाय तो यही है कि हम प्लान के मुताबिक बकरियों को प्लेग-चेचक के टीके लगवाते रहें. क्योंकि टीके लगवाने का खर्च जहां बहुत ही मामूली होता है और सरकारी केन्द्रों पर तो यह फ्री में भी लग जाते हैं. वहीं अगर यह बीमारी बकरियों को लग जाए तो इलाज में काफी पैसा खर्च हो जाता है. साथ ही एक जरूरी कदम यह भी उठाएं कि अगर बकरी को प्लेग या चेचक हो जाए तो उसे फौरन ही दूसरी बकरियों से अलग कर दें.
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