Fish Farming: मछलियों की ये तीन वैराइटी खूब कराती हैं मुनाफा, सबसे ज्यादा खाई जाती हैं यहां 

Fish Farming: मछलियों की ये तीन वैराइटी खूब कराती हैं मुनाफा, सबसे ज्यादा खाई जाती हैं यहां 

Fisheries कम खर्च में ज्यादा मछलियां पालने के लिए तालाब को बेहतर विकल्प माना गया है. फिशरीज एक्सपर्ट का कहना है कि तालाब में रोहू, कतला और मृगल पालना फायदे का सौदा है. शुरुआत में जीरा साइज बीज डाला जाता है. फिर यही बीज 18 महीने में एक से डेढ़ किलो की मछली बनकर तैयार हो जाता है. इस खबर में हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि कैसे एक मछली हैचरी से लेकर तालाब तक का सफर तय करती है. 

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Fish Farming: मछलियों की ये तीन वैराइटी खूब कराती हैं मुनाफा, सबसे ज्यादा खाई जाती हैं यहां नॉर्थ इंडिया में खूब पाली जाती हैं रोहू, कतला और मृगल मछलियां.

Fisheries मछली की डिमांड बाजार में उसकी उपलब्धता के आधार पर होती है. बहुत सारे ऐसे राज्य हैं जहां अलग-अलग वैराइटी की मछली पसंद की जाती है. इसी तरह से अगर नॉर्थ इंडिया की बात करें तो यहां मछलियों की तीन खास वैराइटी पसंद की जाती है. फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो मछलियों की ये तीनों ही वैराइटी खाने में बहुत पसंद की जाती हैं. उत्तर भारत में इन्हें रोहू, कतला और मृगल के नाम से जाना जाता है. मृगल को नैनी मछली भी कहा जाता है. हालांकि मछली के दाम उसके वजन के हिसाब से तय होते हैं. 

लेकिन रोहू, कतला और मृगल एक से डेढ़ किलो वजन में खूब पसंद की जाती है. वैसे मछली का जितना ज्यादा वजन होगा उसके दाम उतने ही ज्यादा होते हैं. लेकिन मछली की ये तीनों वैराइटी 18 महीने में भी मुनाफा कराने लगती हैं. 18 महीने यानि डेढ़ साल में ही तीनों वैराइटी की मछलियों का वजन एक से डेढ़ किलो तक हो जाता है. यही वजह है कि एक्सपर्ट खासतौर नॉर्थ इंडिया में रोहू, कतला और मृगल पालन की सलाह देते हैं. 

इन दो राज्यों में बिकता है मछलियों का बीज 

मछली पालक जगताप सिंह ने बताया कि मछली पालने के लिए कोलकाता और आंध्रा प्रदेश के अलावा और दूसरी जगहों की हैचरी से भी बीज लाया जाता है. लेकिन बीज की सबसे ज्यादा बिक्री आंध्रा प्रदेश और कोलकाता में होती है. वैसे तो बीज तीन तरह का होता है. लेकिन सबसे ज्यादा जीरा साइज का बीज बिकता है. इसके एक-एक हजार बीज के पैकेट आते हैं. इस बीज को आप सीधे लाकर तालाब में भी डाल सकते हैं. लेकिन ऐसा करने पर बीज का सक्सेज रेट बहुत ही कम 25 फीसद तक ही होता है. 

ये है मछलियों के बीज का सक्सेस रेट बढ़ाने का तरीका  

जगताप का कहना है कि अगर आप हैचरी से बीज लाकर पहले उसे तालाब में डालते हैं तो उसका सक्सेस रेट कम यानि 25 फीसद तक ही रहता है. लेकिन अगर आप हैचरी से लाए गए बीज को पहले नर्सरी में डालते हैं तो उसका सक्सेस रेट बढ़कर 35 से 40 फीसद तक हो जाता है. नर्सरी में तीन से छह महीने तक आप बीज को रख सकते हैं. इस दौरान जीरा साइज का बीज फिंगर साइज या फिर 100 ग्राम तक का हो जाता है. इस साइज के बीज को आप फिर तालाब में ट्रांसफर कर सकते हैं. नर्सरी में रखने के दौरान बीज को सरसों की खल और चावल के छिलके का चूरा खिला सकते हैं.  

इस वजन में खूब बिकती हैं रोहू, कतला और मृगल 

फिशरीज एक्सपर्ट ने बताया कि अगर तालाब में पानी की आपने उचित देखभाल की है. मछलियों में बीमारी नहीं पनपने दी है. मछलियों में फुर्ती लाने के लिए आपने जाल चलवाया है और भैंसें भी तालाब में उतरवाई हैं तो रोहू, कतला और मृगल वैराइटी की मछलियां 18 महीने में एक से डेढ़ किलो वजन तक की हो जाती हैं. दिल्ली-एनसीआर में इस वजन की मछलियां खासतौर पर पसंद की जाती हैं.    

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