किसी भी तरह के मौसम में जब पशुओं को खिलाने के लिए कुछ नहीं मिलता है तो हरा चारा आसानी से मिल जाता है. लेकिन हरा चारा जितनी आसानी से उपलब्ध हो जाता है और पशुओं के लिए जितना फायदेमंद है तो जरा सी लापरवाही पर उससे भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. चारे में मौजूद मामूली सी नमी भी पशुओं को बीमारी बना सकती है. चारे में मौजूद नमी के चलते पशु के शरीर में माइकोटॉक्सिन नाम की बीमारी को पनपने का मौका मिल जाता है.
खासतौर से मॉनसून के दौरान आने वाले हरे चारे से ये बीमारी बहुत तेजी से फैलती है. फीड एंड फोडर एक्सपर्ट का कहना है कि अगर चारे में जरा सी भी नमी रह जाती है और हम उसे स्टॉक कर पशुओं को खिलाते हैं तो उसमे फफूंद लग जाती है. और फफूंद लगे चारे को खाने के बाद पशुओं को माइकोटॉक्सिन नाम की बीमारी अपनी चपेट में ले लेती है.
साइलेज एक्सपर्ट फिरोज खान, संस्थापक कॉनेक्ट का कहना है कि अगर आप डेयरी कारोबारी हैं तो साइलेज को इस्तेमाल करें बिना डेयरी का संचालन नहीं कर सकते हैं. डेयरी प्लान के साथा साइलेज को भी शामिल करना होगा. ये डेयरी की रीढ़ की हड्डी है. इसके चलते पूरे साल हर मौसम में हरा चारा उपल्बध रहता है. ऐसा भी नहीं है कि साइलेज बनाने से हरे चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है. हरा चारा हो या फिर बॉयोमास किसी से भी साइलेज तैयार करने पर उसकी पौष्टिकता में कोई कमी नहीं आती है. फिर चाहें चारे के हिसाब से उसे एक महीने रखा जाए या फिर 12 महीने. साइलेज की मदद से हम पशुओं की फीड-फोडर से जुड़ी बहुत सारी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. लेकिन ये भी जरूरी है कि वक्त-वक्त पर हम साइलेज में फफूंद की जांच करते रहें.
फीड एंड फोडर एक्सपर्ट डॉ. आरपी सिंह का कहना है कि पशुओं को खिलाने के लिए साइलेज में क्वालिटी का होना बहुत जरूरी है. अगर साइलेज में एक सीमा से ज्यादा फंगस या एफ्लाटॉक्सिन पाया जाता है तो ऐसे साइलेज का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए. डॉ. ग्रेवाल ने साइलेज निर्माण के दौरान इसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए एडिटिव्स के इस्तेमाल करने के फायदों पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि इसका उपयोग भैंस, गाय, बकरी और भेड़ आदि सहित सभी जुगाली करने वालों के लिए किया जा सकता है.
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