घर के अंदर पाला जाने वाला पशु हो या फिर सड़क पर घूमने वाला छुट्टा पशु, 70 से ज्यादा ऐसी बीमारियां हैं जो पशुओं से इंसानों में आती हैं. इसमे दुधारू पशु यानि गाय-भैंस और भेड़-बकरियां भी शामिल हैं. एक आंकड़ा बताता है कि हर साल करोड़ों लोगों इसकी चपेट में आते हैं और लाखों लोगों की मौत हो जाती है. इन्हें जूनोटिक बीमारी कहा जाता है. संक्रमित पशु के साथ सीधे संपर्क से, एयरोसोल, छोटी बूंद के संक्रमण से, शरीर से निकलने वाली लार, ब्लड या फिर संक्रमित पशु के शरीर से निकलने वाला कोई दूसरा द्रव, जानवर के काटने से इस तरह की बीमारियां होती हैं.
वहीं वैक्टर, दूषित भोजन, पानी और वायु-जनित या फोमाइट-जनित संचरण के माध्यम से भी इस तरह की बीमारियां होती हैं. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI), बरेली के साइंटिस्ट का कहना है कि जिस तरह से हमारे देश में आज पशु-पक्षी और इंसान एक-दूसरे के संपर्क में आ रहे हैं उसके लिए जागरुकता जरूरी है. डेयरी, पोल्ट्री और फिशरीज का कारोबार तो एक-दूसरे के संपर्क में आए बिना हो ही नहीं सकता है.
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दूषित एनिमल फूड जैसे दूध, मीट और अंडे के सेवन से
तालाब, पोखर और डेयरी में दूषित पानी पीने से
अनुचित तरीके से प्रजनन होने पर
बहुत सारे पशुओं को एक साथ रखने से
इंसानों और पशुओ को एक ही छत के नीचे साथ रखने से
पशुओं का सही तरीके से मैनेजमेंट नहीं करने से
हर रोज पशुओं के सम्पर्क में आने से
पशुओं द्वारा खरोंचे मारने और काटे जाने से
प्रदूषित वातावरण और बाड़े को गंदा रखने से
मृत पशुओं के शवों का सही तरीके से निस्तारण ना करना
सांस की नली से
आंखों की झिल्ली कंजक्टाइवा से
जेनेटालिया तथा पेशाब की नली से
पशुओं की गर्भनाल से
पशुओं के थनों से दूध में
पोल्ट्री फार्म में अंडों से
एआई किए जाने पर संक्रमित वीर्य से.
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(1) ‘स्वाइन फ्लू’ या ‘स्वाइन इनफ्लूएंज़ा’.
(2) ‘बर्ड फ्लू’ या ‘पक्षी फ्लू’ और (एच1 एन1).
(3) ‘रेबीज’ (कुत्ते के काटने से होने वाला जानलेवा रोग).
(4) ‘जापानी मस्तिष्क ज्वर’ (इंसेफेलाइटिस).
(5) ‘क्यासानूर फोरेस्ट रोग’ (संक्रमित किलनी के काटने से होने इंफेक्शेन).
(6) ‘पीलिया’ (रोगी पशु अथवा मनुष्य के मल से होने वाला इंफेक्शान).
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