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Luvas: इस राज्य में अब सड़कों पर नहीं घूमतीं गाय, लुवास की हाईटेक लैब ने निकाला रास्ता, पढ़ें डिटेल

Luvas: इस राज्य में अब सड़कों पर नहीं घूमतीं गाय, लुवास की हाईटेक लैब ने निकाला रास्ता, पढ़ें डिटेल

लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार के वाइस चांसलर डॉ. विनोद वर्मा का कहना है कि हरियाणा पशुपालन के क्षेत्र में एक खास जगह रखता है. इसलिए इस तकनीक का उपयोग करके राज्य पशुपालन का भविष्य बदला जा सकता है और इसकी कोई सीमा नहीं होगी. क्योंकि हरियाणा में गायों की हरियाणा और साहीवाल जैसी नस्ल मौजूद हैं. 

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symbolic photo. symbolic photo.

सड़क पर छुट्टा घूमने वाली गायों की परेशानी का हल निकाल लिया गया है. अब ये गाय पशुधन नस्ल सुधार में बड़ा रोल अदा करेंगी. हरियाणा गौसेवा आयोग के चेयरमैन का तो दावा है कि अब हरियाणा में छुट्टा गाय सड़कों पर नहीं घूमती हैं. गौसेवा आयोग और लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार, पशुपालन एवं डेयरी विभाग हरियाणा और हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड की साझा कोशिश से अब छुट्टा घूमने वाली गायों का इस्तेमाल गायों की दो खास नस्ल, हरियाणा और साहीवाल का कुनबा बढ़ाने में किया जा रहा है. 

इसके लिए लुवास में एक हाईटेक लैब तैयार की गई है. जहां भ्रूण स्थानांतरण और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की मदद से अच्छी नस्ल के बछड़े तैयार किए जा रहे हैं. इस लैब में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सभी सुविधाएं मौजूद हैं. लैब के लिए साइंटिस्ट की एक अलग टीम तैयार की गई है. हाल ही में इस संबंध में लुवास में एक सेमिनार का भी आयोजन किया गया था. 

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गाय में ये गुण हैं तो सड़क पर नहीं घूमेगी छुट्टा 

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, गुजरात के भ्रूण प्रत्यारोपण विधि विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ का कहना है कि अगर भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी को पशुपालक के स्तर पर अपनाना है तो इसकी लागत को भी कम करना होगा. इसे लागू करने के लिए ट्रेंड मैन पावर और इस्ते माल में आने वाली वस्तुएं आसानी से उपलब्ध करानी होंगी. हालांकि इस सब में कुछ चुनौतियां जरूर मौजूद हैं. जैसे इस खास तकनीक के लिए पशुओं की पहचान करना, ऐसे पशुपालकों को तलाशना जिनके पास 15 से 20 गाय उपलब्ध हों ताकि एक समय पर ज्यादा भ्रूण प्रत्यारोपण कर लागत को कम किया जा सके. 

तकनीक की मदद से आसान है भ्रूण को ट्रांसफर करना 

भ्रूण प्रत्यारोपण विधि विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि भारत सरकार कई योजनाओं के जरिये इस तकनीक को किसानों को अपनी इनकम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इस तकनीक का इस्तेमाल करके पशु की पीढ़ी के अंतराल को कम किया जा सकता है. वहीं एक अन्य एक्सपर्ट डॉ. अजय पाल सिंह असवाल, कलसी, उत्तराखंड डेयरी विकास बोर्ड ने बताया कि यूनिवर्सिटी, राज्य डेयरी विकास बोर्ड, गौशालाओं और राज्य पशुपालन विभाग की आपकी साझेदारी होनी चाहिए. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि एक छोटे तरल नाइट्रोजन सिलेंडर में हजारों भ्रूण इधर से उधर ले जाए जा सकते हैं और उन्हें ट्रांसफर भी किया जा सकता है.

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डॉ. असवाल ने कहा कि जिन जानवरों में उत्पादन की कमी होती है, लेकिन उनकी प्रजनन क्षमता अच्छी होती है तो  उन्हें इस तकनीक का उपयोग करके अच्छे उत्पादन के साथ कई जानवरों को पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके साथ ही सबसे अहम बात ये है कि इस तकनीक सफल इस्तेमाल करने के लिए वक्तह से ये पता होना बहुत जरूरी है कि पशु गर्मी में आया है या नहीं.