भेड़-बकरियों में तेजी से फैलती है पीपीआर और शीप पॉक्स बीमारी.Foot Rot Disease भेड़-बकरी को मीट और दूध के लिए पाला जाता है. लेकिन उससे ज्यादा मुनाफा भेड़-बकरी के बच्चों से होता है. बच्चे देने के मामले में भेड़ बकरी बहुत आगे हैं. भेड़ भी बकरी की तरह से साल में दो बार बच्चे देती है, लेकिन भेड़ ज्यादातर मामलों में तीन से चार बच्चे तक भी देती हैं. इस तरह बकरी जहां एक साल में चार बच्चे देती है तो भेड़ एक साल में छह से आठ बच्चे तक दे देती है. इसीलिए भेड़ पालन को बकरी पालन के मुकाबले ज्यादा मुनाफे वाला माना जाता है.
लेकिन इस वक्त हरियाणा में खासतौर पर भेड़ों पर फुट रॉट बीमारी का खतरा मंडरा रहा है. लुवास यूनिवर्सिटी, हिसार के मुताबिक भेड़ फुट रॉट की चपेट में आने लगी हैं. ऐसा नहीं है कि ये बीमारी बकरियों पर अटैक नहीं करती है. हरियाणा में बड़ी संख्या में बकरियां भी फुट रॉट की चपेट में आ रही हैं.
भेड़-बकरी पालक फुट रॉट को चिकड़ नामक रोग से जानते हैं. यह रोग जीवाणुओं द्वारा होता है. इस रोग में भेड़ के खुरों की बीच की चमड़ी पक जाती है. वह लंगडी हो जाती है. भेड़ों को तेज़ बुखार हो जाता है. इस रोग के जीवाणु मिटटी द्वारा एक जानवर से दूसरे में चले जाते है. यह एक छूत का रोग है, जो एक जानवर से पूरे झुंड में फैला जाता है.
इस रोग से ग्रस्त भेड़ को अपने झुंड में ना लाऐं. जिस रास्ते से इस बीमारी वाला अन्य झुंड गुज़रा हो उस रास्ते से एक सप्ताह तक अपने झुंड को न ले जाऐं. बीमार भेड़ के खुरों की सफाई रखें. उनके खुरों को नीले थोथे (कापर सल्फेट) के घोल से धोऐं और एन्टीवायोटिक मलहम लगाएं. चिकित्सक की सलाह अनुसार चार-पांच दिनों तक एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन लगाऐं.
जानकारों की मानें तो हरियाणा में फुट रॉट बीमारी हाल ही में आई बाढ़ और भारी बारिश के चलते फैल रही है. क्योंकि इस बीमारी के फैलने की सबसे बड़ी वजह गीली मिट्टी और कीचड़ है. जब कई-कई दिन तक भेड़-बकरियों के पैर और खुरों में कीचड़ लगी रहती है तो उनमे संक्रमण फैल जाता है. इसके बाद भेड़-बकरी का उत्पादन घट जाता है. एक्सपर्ट का कहना है कि जब भेड़-बकरियों को फुट रॉट हो जाए तो उसके बाद उन्हें उस रास्ते पर चराने न ले जाएं जिस पर वो रोजाना जाती हैं.
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