चीन के बाद भारत रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. दुनिया में चीन और भारत कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 91 फीसदी हिस्सा साझा करते हैं. हालांकि साल 2016 और 2020 के बीच वैश्विक रेशम उत्पादन में गिरावट का रुख है. रेशम उत्पादन आधे से अधिक गिर गया, जिसका मुख्य कारण चीन में इसके उत्पादन में भारी गिरावट है. चीन में रेशम उत्पादन पिछले दस वर्षों से घट रहा है, जहां चीन में रेशम उत्पादन 2015 में 1.70 लाख टन से घटकर साल 2022 तक केवल 50,000 टन रह गया है. इसमें बहुत ज्यादा मजदूर की जरूरत होती है, इसमें शहतूत की पत्ती को तोड़कर लाकर छोटे-छोटे हिस्से में काटकर रेशम कीट को खिलाना रहता है. इसमें कुशल की जरूरत होती है.
चीन में इस समय बहुत ज्यादा श्रमिक की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी वजह से शहतूत रेशम का उत्पादन गिर गया है.जबकि इस अवधि के दौरान भारत में भारत का कच्चा रेशम उत्पादन साल 2015 में 28,523 टन से बढ़कर 2022 में 36,582 टन हो गया है. पड़ोसी देश चीन में कच्चे रेशम के उत्पादन में भारी गिरावट ने भारत को रेशम की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए अपने रेशम उत्पादन को बढ़ाने का अवसर प्रदान किया है.
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भारत में उत्पादित कुल रेशम का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा शहतूत रेशम का है, जिसमें कर्नाटक शहतूत रेशम का प्रमुख उत्पादक है. शहतूत कम पूंजी में भी अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय माना जाता है. ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है. भारत के प्रसिद्ध रेशम शहर रामनगर जो बेंगलुरु से लगभग 50 किमी दूर है, एशिया के सबसे बड़े रेशम कोकून बाजार के रूप में जाना जाता है.
बेंगलुरु के मधुसूदन एम एस बायोटेक्नोलॉजी में स्नातक हैं. वे एक स्टार्टअप कैरनरोज़ बायोसोल प्राइवेट लिमिटेड चलाते हैं. उनका कहना है कि शहतूत रेशम पालन में रेशम पालकों को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कर्नाटक में शहतूती रेशम पालन व्यवसाय से लगभग 13 लाख लोग जुड़े हुए हैं. उनके द्वारा रेशम के कीटों को ताजे शहतूत पत्तियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पाला जाता है. लेकिन अब इसमें बहुत सी समस्याएं आने लगी हैं.
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शहरीरण के कारण शहतूत पौधे उगाने के लिए कम होती जमीन मुश्किलें खड़ी कर रही है. दूसरी तरफ खेत की मिट्टी की गिरती उर्वरता के कारण शहतूत पत्तियों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की कमी और रासायनिक अधिशेष की अधिकता के कारण इससे कोकून की गुणवत्ता के साथ उपज में कमी हो जाती है. इसके आलावा बंगलौर के नजदीकी इलाकों में शहरीकरण की वजह से मजदूरों की समस्या होने लगी है. इसके कारण शहतूत रेशम पालन की लागत बढ़ने लगी है. इससे चीन से अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा में कठिनाई आ रही है.
शहतूती रेशम पालन में आ रही इन दिक्कतों को देखते हुए मधुसूदन एम एस ने शहतूत रेशम कीट के वैकल्पिक चारा के रूप में कृत्रिम आहार बनाया है, जिसमें रेशमकीट के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व शामिल हैं. उनका कहना है कि किसानों ने रेशमकीट पालन के लिए कृत्रिम चारे का उपयोग किया तो कोकून की उपज में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है और लगभग 15 फीसदी लागत में कमी होती है. उनके मुताबिक, इस कृत्रिम आहार से शहतूत की खेती पर रेशमकीट पालन की निर्भरता को कम करने और भारतीय कच्चे रेशम की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. उनका कहना है कि रेशम के कृत्रिम आहार से शहतूती रेशम पालन करने वाले किसानों की लागत में कमी आएगी. मजदूरों को समस्या से निजात मिलेगी और शहतूती रेशम की गुणवत्ता भी बेहतर होगी जिससे चीन से ग्लोबल मार्केट में प्रतिस्पर्धा कर पाएगे.
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