हिन्दू धर्म में गाय को ना केवल एक पशु माना जाता है बल्कि गाय को माता का भी दर्जा दिया गया है. मान्यताओं के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है. यही कारण भी है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गाय की पूजा की जाती है. गाय के दूध से लेकर गाय के गोबर और गोमूत्र को भी हिन्दू सभ्यता में बहुत पवित्र माना गया है. पूजा-पाठ या किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में गाय के दूध से लेकर गौमूत्र तक का इस्तेमाल किया जाता है. जिस वजह से ना सिर्फ भारत में बल्कि अन्य देशों में भी गाय की पूजा की जाती है.
इतना ही नहीं कई लोग अपना जीवन चलाने के लिए भी गाय पर निर्भर हैं. ऐसे में गाय की कई नस्लों का पालन किया जाता है ताकि लोगों का अपना पेट भर सके. ऐसे में गाय की लाल सिंधी नस्ल का भी पालन किया जाता है. आइए जानते हैं क्या है इसकी खासियत और कैसे करें इसकी पहचान.
इसके लाल रंग के कारण इसका नाम लाल सिंधी गाय पड़ा. इस गाय का रंग भी लाल बादाम है, जबकि आकार में यह लगभग साहीवाल के समान है. इसके सींग जड़ों के पास बहुत मोटे होते हैं और बाहर निकलने वाले सिरे पर ऊपर की ओर उठे होते हैं. शरीर की तुलना में इसके कूबड़ आकार में बड़े होते हैं या यूं कहें कि ये बैलों के समान ही होते हैं. इस नस्ल की गाय का रंग लाल होता है. जैसा की नाम से भी पता चलता है. हालांकि यह लाल रंग हल्के से लेकर गहरे लाल रंग तक का हो सकता है. इस नस्ल की गायों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है जिस वजह से पशुपालक इस गाय का पालन करना पसंद करते हैं. इसका वजन भी आम गायों से अधिक औसतन 350 किलोग्राम तक का होता है. पहले यह गाय सिर्फ सिंध इलाके (पकिस्तान) में पाई जाती थीं, लेकिन अब देश के अलग अलग राज्यों में जैसे की पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं. हालाँकि अभी भी इस गाय की संख्या भारत में काफी कम है.
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लाल सिंधी गायों की सबसे पहली विशेषताओं में से एक उनकी असाधारण दूध देने की क्षमता है. यह अधिक दूध देने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं और अक्सर अन्य देशी नस्लों को पार करते हैं. औसतन, एक लाल सिंधी गाय प्रति स्तनपान चक्र में 1,500 से 3,000 लीटर दूध का उत्पादन कर सकती है. दूध की यह उच्च उपज उन्हें डेयरी फार्मिंग के लिए और अधिक जरूरी बनती है और उनके आर्थिक महत्व में योगदान करती है. लाल सिंधी गाय गर्म और उष्णकटिबंधीय जलवायु के अनुकूल होने में उत्कृष्ट हैं. उन्होंने सिंध, भारत और अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आसानी से रह सकती है. जैसे गर्म, आर्द्रता और मुश्किल परिस्थितियों के लिए गाय की इस नस्ल को विकसित किया है. ऐसी जलवायु में फलने-फूलने की उनकी क्षमता उन्हें चुनौतीपूर्ण मौसम पैटर्न वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाती है.
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