दुधारू पशुओं को सायनाइड पॉइजनिंग से बचाएं, लक्षण और बचाव का ये रहा तरीका

दुधारू पशुओं को सायनाइड पॉइजनिंग से बचाएं, लक्षण और बचाव का ये रहा तरीका

सायनाइड विषाक्तता भी पशुओं के ल‍िए खतरनाक है. यह एक शक्तिशाली विष है जो कई प्रकार के चारों जैसे ज्वार, बाजरा, चरी, पेड़ी आदि में पाया जाता है. गर्मी के मौसम तथा पानी के अभाव में या सूखा पड़ने पर अपूर्ण विकसित मुरझाते या सूखते चारे में सायइनाइड की मात्रा अधिक होती है.

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दुधारू पशुओं को सायनाइड पॉइजनिंग से बचाएं, लक्षण और बचाव का ये रहा तरीकाक्या है सायनाइड पॉइजनिंग जो पशुओं का जान तक ले सकती है

विष एक ऐसा पदार्थ है जिसके खाने, पीने अथवा अधिक मात्रा में प्रयोग से आमतौर पर पशुओं की मृत्यु हो जाती है. बहुत से विषाक्त तत्व हरे चारों या बाहरी माध्यम से पशुओं को हानि पहुंचाते हैं. इसलिए पशुपालकों को इन विषाक्त तत्वों के बारे में जानकारी होनी चाहिए ताकि ऐसी कोई दुर्घटना होने पर वे अपने पशुओं के जीवन की रक्षा कर सकें. सायनाइड विषाक्तता भी पशुओं के ल‍िए खतरनाक है. यह एक शक्तिशाली विष है जो कई प्रकार के चारों जैसे ज्वार, बाजरा, चरी, पेड़ी आदि में पाया जाता है. गर्मी के मौसम तथा पानी के अभाव में या सूखा पड़ने पर अपूर्ण विकसित मुरझाते या सूखते चारे में सायइनाइड की मात्रा अधिक होती है. जानकारी के आभाव में पशुपालक जब ऐसा चारा पशु को खिला देते है तो पशु इस विषाक्तता का शिकार हो जाता है. 

यह विषाक्तता हाइड्रोसाइएनिक एसिड तथा साइनोजेनेटिक पौधों जैसे ज्वार बाजरा तथा मक्का आदि को खा लेने से उत्पन्न होती है. हालांकि खरीफ की फसल का लाजवाब हरा चारा है ज्वार, जो कि बहुत ही पौष्टिक है और इसमें 8 से 10 प्रतिशत तक क्रूड प्रोटीन पाई जाती है. एक बार कटने वाली प्रजाति में 200 से 300 कुंतल हरा चारा प्रति हेक्टेयर और कई बार कटने वाली प्रजाति में 600 से 900 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है. मगर एक बहुत बड़ा दुर्गुण भी है इसमें. इसके अंदर एक साइनोजेनिक ग्लूकोसाइड पाया जाता है. जिसका नाम है धूरिन ये धूरिन ही विषाक्तता की जड़ है. गर्मी के मौसम तथा पानी के अभाव में या सूखा पड़ने पर अपूर्ण विकसित मुरझाते या सूखते चारे में सायइनाइड की मात्रा अधिक होती है. 

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क्या हैं इसे प्रभाव‍ित पशु के लक्षण 

प्रभावित चारा खाने के 10-15 मिनट बाद ही पशु में बेचैनी होती है. मुंह खोल कर श्वास लेना, मुंह पर फेन आना, अफरा होना, आंख की पुतलियों का फैल जाना, पशु का गिर जाना एवं उठने में असमर्थ रहना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते है. मांस-पेशियों में तीव्र ऐंठन के साथ दुग्ध ज्वर की तरह सिर को बगल की तरफ घुमा कर रखना एवं आंखें बन्द करना भी इसका लक्षण है. मुंह से कड़वे बादाम जैसी गंध आना, दांतों का किटकिटाना एवं दम घुटने जैसी कराह और पीड़ा के साथ 1-2 घंटे में पशु की मृत्यु हो जाती है.

बचाव के उपाय

  • पशुओं को सूखे से प्रभावित मुरझाये या सूखते हुये, कम बढ़ी हुई ज्वार, बाजरा, चरी आदि नहीं खाने देना चाहिए.
  • सूखा पड़ने पर या पानी के कमी के कारण बौने, सूखकर टेढ़े पीले मुरझाते या असमान्य पौधों को भी चारे के रूप में उपयोग में नहीं लाना चाहिए.
  • 30 दिन के उम्र वाले पौधों तथा जमीन की सतह के पास नई शाखाओं में यह विष अधिक मात्रा में होता है. इसल‍िए बुआई के पश्चात 50 दिन बाद या फूल आने पर फसल की कटाई करें तथा सुखे चारों में मिलाकर खिलाएं. 
  • फसल को फूल लगने के समय 'हे' या साइलेज के रूप में संरक्षित कर लें क्योंकि पकने के दौरान यह विष समाप्त हो जाता है.
  • हरे चारे को पशु को खिलाने के पूर्व उसे धूप में 1-2 घंटे फैलाने से चारे के अंदर उपस्थित विष की मात्रा में काफी कमी हो जाती है.
  • सायनाइड विषाक्तता के लक्षण प्रकट होने पर पशु को 8 ग्राम सोडियम नाइट्राइट 120 मि.ली. आसुत जल एवं 200 ग्राम सोडियम थायोसल्फेट को एक लीटर आसुत जल में घोलकर नस के माध्यम से देना चाहिए.
  • 30-50 ग्राम सोडियम थायोसल्फेट हर घंटे मुंह से देना चाहिए. डेक्स्ट्रोज या कैल्बोराल एवं एन्टीहिस्टामिनिक का इन्जेक्शन देना चाहिए.

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