पशुपालक दूध बढ़ाने के लिए अक्सर पशुओं को हरा चारा देते हैं. ऐसा माना जाता है कि दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए हरा चारा बहुत जरूरी है. लेकिन अगर ऐसी व्यवस्था नहीं है तो भी आप अपने पशुओं से अच्छी मात्रा में दूध प्राप्त कर सकते हैं. हमारे यहां गाय-भैंस प्रजाति के सभी पशु मुख्य तौर पर हरे चारे, भूसा व धान के पुआल पर निर्भर रहते हैं. पशुओं को स्वस्थ रखने और उनकी उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए उनके आहार में विभिन्न पोषक तत्वों का होना अति आवश्यक है. इन तत्वों में मुख्यतौर पर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज तत्व व विटामिन का होना बहुत आवश्यक है. हमारे पशु आहार में कार्बोहाइड्रेट की समस्या नहीं है लेकिन प्रोटीन, खनिज एवं विटामिन 'ए', 'डी', 'ई' व 'के' की विशेष कमी है. जबकि 'सी' तथा 'बी' श्रेणी के विटामिन इनके पेट में खुद बन जाते हैं.
पशु वैज्ञानिकों का कहना है कि पशुओं के लिए गैर-दलहनी चारों के मिश्रण का समावेश होना चाहिए. पांच लीटर तक दूध देने वाले पशुओं को केवल अच्छी प्रकार के हरे चारे पर रख कर दूध प्राप्त किया जा सकता हैं. पांच लीटर से अधिक दूध देने वाले पशुओं को प्रति 2.0 या 2.50 लीटर दूध पर 1 कि.ग्रा. अतिरिक्त दाना देना चाहिए. दाने में एक भाग खली, एक भाग अनाज व एक भाग चोकर होने पर यह संतुलित व सस्ता रहता है. दाने में 2 प्रतिशत खनिज लवण व 1 प्रतिशत नमक का होना अत्यन्त आवश्यक है. बरसीम व अन्य दलहनी चारे को भूसे में मिलाकर देना चाहिए.
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सौ किलोग्राम सामान्य भूसे या सूखे फसल अवशेषों को 4 किलोग्राम यूरिया से उपचारित किया जाता है. चार किलोग्राम यूरिया को 50 लीटर पानी में घोल लेते हैं तथा 100 कि.ग्रा. भूसे पर अच्छी तरह छिड़क कर मिला लेते है. उपचारित भूसे को पैर से दबाकर पक्के फर्श अथवा पालीथीन के चादर पर चट्टे के रूप में ढेर बनाते हैं. जिससे लांच की हवा निकल जाय. फिर इसे अच्छी तरह ढ़ककर छोड़ देते हैं. जिससे अमोनिया गैस बाहर न निकल सके. भूसा गीला होने पर भी यूरिया से उत्पन्न अमोनिया जैसे क्षार की उपस्थिति में खराब नहीं होता है.
उपचारित चारे का प्रयोग गर्मी में उपचार के 7-10 दिन बाद तथा जाड़े में 10-15 दिन बाद शुरू किया जा सकता है. खिलाने के लिए आवश्यकतानुसार उपचारित भूसा बाहर निकालें. इसे कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें जिससे अनावश्यक अमोनिया उड़ जाए. अनुमान के अनुसार एक वयस्क भैंस 12-15 कि.ग्रा. तथा गाय 10-12 कि.ग्रा. तक सूखा चारा खा सकती है. कम उम्र के बढ़ने वाले पशु को इसका आधा अथवा तीन चौथाई सूखे चारे की आवश्यकता होगी. इस आधार पर गणना करके पशुपालक एक साथ, एक सप्ताह के लिए सूखा चारा उपचारित कर सकते हैं जिससे नियमित उपचारित चारा पशुओं को मिलता रहे.
पशुओं को दाना व चारे को मिश्रित करके खिलाना चाहिए या दूसरे शब्दों में कहें तो सानी बना कर देना चाहिए. सानी बनाने से पूर्व इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि चारे को कुट्टी के रूप में काट लिया जाय अन्यथा पशु अपनी इच्छा से चुन कर अपनी पसंद का भाग खा लेता है और मोटे या अधिक रेशे वाले टुकड़े को छोड़ देता है. दुग्ध उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत लागत पशु आहार पर आता है. यदि पशुपालक दाना मिश्रण को मुख्य आहार बना कर दुग्ध उत्पादन करते हैं तो यह बहुत महंगा पड़ेगा. पशुओं को ज्यादा से ज्यादा हरा चारा खिलाना सबसे सस्ता एवं लाभप्रद तरीका है. इस सम्बन्ध में विभिन्न परिस्थितियों हेतु हरे चारे के साथ-साथ कुछ अन्य विकल्प सुझाये गये हैं.
ऐसे पशु जो मात्र गेहूं का भूसा अथवा पुआल पर निर्भर हों उनके लिए यूरिया शीरा खनिज मिश्रित ईंट बहुत उपयोगी है. यह यूरिया, खनिज मिश्रण, सीमेन्ट, साधारण नमक व शीरा आदि मिलाकर बनाया जाता है. ये पशुओं को प्रमुख एवं सूक्ष्म खनिज लवण प्रदान करने के अतिरिक्त नाइट्रोजन व ऊर्जा प्रदान करता है. यह ईंट पशुओं के नॉद पर रख दिया जाता है तथा पशु अपनी इच्छानुसार इसे चाटता है. इसकी खपत प्रति दिन प्रति पशु लगभग 400 ग्राम तक है. साधारण सूखे चारे पर निर्भर रहने वाले दुधारू पशुओं में ईंट के प्रयोग से 250-300 ग्राम दूध उत्पादन प्रति दिन बढ़ाया जा सकता है. जिस पर अतिरिक्त व्यय (इंट की कीमत) मात्र 3 रू० प्रति पशु प्रति दिन आता है. यही नहीं इस ईंट के लगातार प्रयोग से पशुओं के प्रजनन क्षमता में भी सुधार होता है.
छोटे पशुओं को 15-25 ग्राम/दिन तथा बड़े पशुओं 50-60 ग्राम / दिन खनिज मिश्रण देने की आवश्यकता है. खनिज मिश्रण खरीदते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि यह आईएसआई मार्क का होना चाहिए. ऐसे पशु जो बार-बार मद (गर्मी) में आते थे या आते ही नहीं थे, खनिज मिश्रण के प्रयोग से बहुत अच्छे परिणाम आए हैं. खनिज मिश्रण देने से पशुओं में गर्भधारण दर उन पशुओं की तुलना में अधिक पाया गया जिन्हें खनिज मिश्रण नहीं दिया गया था. खनिज मिश्रण (50-60 ग्राम) पर व्यय प्रतिदिन प्रति पशु लगभग 2.50 से 3.00 रुपये आता है लेकिन इससे लगभग 500 ग्राम दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है.
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