
गौमूत्र और गाय के गोबर से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है. इसलिए इनका इस्तेमाल खेती-बाड़ी में बढ़ाया जाना चाहिए. गौमूत्र और गाय के गोबर से मिट्टी में ऑर्गेनिक तत्व बरकरार रहेंगे, यहां तक कि उन तत्वों की मात्रा में वृद्धि देखी जाएगी. यह बात नीति आयोग के टास्क फोर्स ने कही है. नीति आयोग ने अपनी स्टडी में पाया है कि मिट्टी में ऑर्गेनिक तत्व तेजी से घट रहे हैं जिन्हें बनाए रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए नीति आयोग के टास्क फोर्स ने गौमूत्र और गाय के गोबर के इस्तेमाल की सिफारिश की है.
गौमूत्र और गाय के गोबर के लिए देश में गौशाला की संख्या बढ़ाने पर जोर है. टास्क फोर्स की रिपोर्ट कहती है, गौशाला बड़ी मात्रा में गौमूत्र और गोबर उत्पादन करती है और ये दोनों चीजें ऑर्गेनिक और बायो-फर्टिलाइजर के प्रमुख स्रोत हैं. गौशालाओं के माध्यम से बड़ी मात्रा में बायो-पेस्टिसाइड्स भी बनाया जा सकता है. रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्य सरकारें अपने स्तर पर गौशालाओं का चयन करे जहां ऑर्गेनिक खाद, बायो-फर्टिलाइजर और बायो-पेस्टिसाइड्स बनाया जा सके.
जिन गौशालाओं में ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर, बायो-फर्टिलाइजर और बायो-पेस्टिसाइड्स बनाया जाना है, उन गौशालाओं को अप्रूवल या सर्टिफिकेट देने के लिए एक पूरा सिस्टमेटिक प्रोसेस होना चाहिए. इसके लिए गौशालाओं को अपने पशुधन को सर्टिफाई करना चाहिए, इन गौशालाओं में बनने वाले ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और बायो-फर्टिलाइजर का क्वालिटी स्टैंडर्ड FC) 1985 से निर्धारित होना चाहिए.
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टास्क फोर्स की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने की है. इस टास्क फोर्स में अध्यक्ष के अलावा कुल 16 सदस्य हैं. इन सदस्यों में डॉ. योगेश सुरी, रजिनी तनेजा, प्रो. विरेंद्र कुमार विजय, डॉ. एस के दत्ता, डॉ. गंगेश शर्मा, उज्ज्वल कुमार, वाई बारामिटकर, एसआर मीणा, शंकर चौधरी, वाईवी सिंह, शाश्वत असावा, राकेश मिश्र, केन राघव, दिनेश डी कुलकर्णी, प्रो. मकरंद एम गंगरेकर और डॉ. नीलम पटेल शामिल हैं.
टास्क फोर्स की रिपोर्ट कहती है, पिछले 10 साल में ऑर्गेनिक और बायो-इनपुट सेक्टर में तेज वृद्धि देखई जा रही है और यह हर साल 10-15 परसेंट की दर से बढ़ रहा है. हालांकि किसान ऑर्गेनिक और बायो फर्टिलाइजर के फायदों के बारे में भलिभांति जानते हैं, लेकिन वे इसका संतोषजनक इस्तेमाल नहीं कर रहे. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि केमिकल खाद सस्ते में और आसानी से उपलब्ध हो जाती है.
रिपोर्ट ने अपनी सिफारिश में कहा है कि मार्केटिंग डेवलपमेंट असिस्टेंस यानी कि MDA के प्रावधान देश में ऑर्गेनिक और बायो-फर्टिलाइजर सेक्टर को मजबूती दे सकते हैं. एमडीए के प्रावधानों की मदद से किसानों को सस्ते में और आसानी से बायो, ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर उपलब्ध कराए जा सकते हैं. किसी एक गौशाला से 10 तरह के प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं जिनमें बायोगैस, बायो सीएनजी, फॉस्फेट आधारित ऑर्गेनिक खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट, बायो-फर्टिलाइजर, बीजामृत, जीवामृत, डंग पॉट्स, डंग ब्रिक्स, पेंट और हैंडीक्राफ्ट. इससे गौपालक और किसानों की आमदनी बढ़ेगी.
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टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया है कि कोई एक गौशाला एक साथ दर्जनों उपयोगी चीजें बनाने में मदद कर सकती है. किसी गौशाला से मुख्य रूप से तीन प्रोडक्ट हो सकते हैं. पहला, बायोफ्यूल. दूसरा, ऑर्गेनिक या बायो फर्टिलाइजर और तीसरा, वैसे सामान जो गाय के गोबर से बनाकर बेचे जा सकते हैं.
गौशाला में तैयार बायोफ्यूल से बायोगैस, बायो सीएनजी बनाई जा सकती है जिससे बिजली और कुकिंग जैसा काम आसानी से संपन्न हो सकेगा. गौशाला में तैयार ऑर्गेनिक या बायो फर्टिलाइजर से फॉस्फेट से भरी ऑर्गेनिक खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट, बायो-फर्टिलाइजर और नेचुरल फार्मिंग इनपुट्स जैसे बीजामृत, जीवामृत आदि बनाए जा सकते हैं. इसी तरह गौशाला से निकले गोबर से गोबर बर्तन (डंग पॉट्स), गोबर ईंट, गोबर पेंट और हैंडीक्राफ्ट बनाए जा सकते हैं. इस तरह के सामान बनाए और बेचे भी जा रहे हैं जिसमें और तेजी लाए जाने की सिफारिश की गई है.
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