
पहाड़ों की कामधेनु यानी बद्री गाय एक उन्नत नस्ल की गाय है. यह गाय उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाली जाती है. यह गाय एक वक्त में एक से तीन किलो तक दूध दे सकती है. वहीं, इसका दूध गाढ़ा व पीला होता है. मालूम हो कि देसी गाय बद्री राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) द्वारा प्रमाणित होने वाली उत्तराखंड की पहली मवेशी नस्ल है. वहीं यह गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है. इसलिए पहले इसे पहाड़ी गाय के नाम से जाना जाता था. हालांकि, 2011 में चंपावत के दौरे पर आए उत्तराखंड के तत्कालीन पशुपालन मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गाय को नया नाम बद्री दिया था. बद्री गाय ज्यादातर उत्तराखंड के अल्मोडा, बागेश्वर, पिथौरागढ, चंपावत, पौडी गढ़वाल, टेहरी गढ़वाल, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और चमोली जिले में पाई जाती है.
बद्री गाय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका घी बाजारों में 5500 रुपये किलो तक बिकता है, जबकि देसी गायों की अन्य नस्लों का घी 1000 से 1500 रुपये किलो से ज्यादा नहीं बिकता है. ऐसे में आइए आज बद्री गाय के बारे में विस्तार से जानते हैं-
बद्री गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता बहुत कम है, इसलिए ज्यादातर पशुपालक इसका पालन करना पंसद नहीं करते. वहीं, मौजूदा वक्त में बद्री नस्ल की गायों की संख्या बहुत कम है. यही वजह है कि इस गाय के संरक्षण के लिए उत्तराखंड में चंपावत जिले के नरियाल गांव के पशुपालन प्रजनन केंद्र में काम चल रहा है. वहीं बद्री गाय अब धीरे-धीरे यहां के स्थानीय लोगों की आमदनी का जरिया बनती जा रही है.
यूकॉस्ट (उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद) व आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) रुड़की के वैज्ञानिकों द्वारा 2017 में बद्री गाय के दूध पर किए गए शोध से यह पता चला कि दुनिया में सबसे अधिक गुणकारी एवं निरोग बद्री गाय का दूध है. शोध में पता चला कि बद्री गाय के दूध में 90 फीसद ए-2 जीनोटाइप बीटा केसीन भी है, जो डायबिटीज और हृदय रोगों को रोकने में कारगर है.
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जेनेटिक भिन्नता के आधार पर दुधारू पशुओं में 12 तरह के बीटा केसीन पाए जाते हैं. वहीं इनमें सिर्फ ए-1 और ए-2 बीटा केसीन को प्रमुख माना जाता है, जबकि ए-3, ए-4, ए-5, ए-6, ए-7,ए-8, ए-9, ए-10, ए-11 और ए-12 बीटा केसीन दुधारू पशुओं दूध में बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं. दूध में प्रोटीन का मुख्य कारक केसीन ही होता है.
पहाड़ी गाय बद्री उत्तराखंड के गांवों की कृषि एवं आर्थिकी से सीधे जुड़ी है. क्योंकि इसे पहाड़ों के उन क्षेत्रों में भी पाला जा सकता है, जहां गायों की अन्य नस्लों पालना करना थोड़ा मुश्किल होता है. वहीं यह गाय केवल पहाड़ों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों और सूखे चारों पर निर्भर रहती है जिनमें समृद्ध औषधीय गुण होते हैं. जबकि, जर्सी, होल्सटिन समेत अन्य नस्ल की गायें दाना, खल आदि पर निर्भर होती हैं. वहीं गाय की इस देसी नस्ल को बहुत कम देखभाल की आवश्यकता होती है. इस गाय की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी काफी अच्छी होती है. नतीजतन, यह गाय जल्दी बीमार नहीं पड़ती है.
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• समुद्र तल से 1200 से 2200 मीटर ऊंचाई पर रह सकती है.
• पहाड़ी इलाकों में आसानी से रह सकती है.
• बद्री गाय काला, भूरा, या ग्रे रंग की होती हैं. कुछ सफेद रंग की भी होती हैं.
• सींघ घुमावदार होता है.
• शरीर का आकार छोटा, माथा सीधा, बीच में कूबड़, थन छोटा और शरीर से चिपका हुआ.
• बैल की ऊंचाई 110.5 सेमी और गाय की ऊंचाई 108 सेमी
• बैल का वजन 257 किलो और गाय का वजन 231 किलो
• एक ब्यान्त में लगभग 632 लीटर दूध देती है.
• दूध में फैट 4 प्रतिशत पाया जाता है.
आमतौर पर गायों की कीमत दूध देने की अवधि, दूध देने की क्षमता, स्थान और उम्र के आधार पर तय किया जाता है. वहीं, बद्री गाय की कीमत/Badri Cow Price लगभग 15 से 40 हजार रुपये तक है.
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