Animal Care in Monsoon बरसात के दौरान पशुओं में संक्रमण तेजी से फैलता है. इसलिए ये जरूरी है कि अगर पशु को हाथ भी लगा रहे हैं तो सेनेटाइज करने के बाद ही लगाएं. ऐसा करने से पशु और पशुपालक दोनों ही संक्रमण से बचे रहते हैं. खासतौर पर गाय-भैंस का दूध निकालते वक्त ऐहतियात बरतने की बहुत जरूरत है. क्योंकि बरसात के दिनों में गाय-भैंस के थनों में सूजन आ जाती है. कई बार जख्म भी हो जाते हैं. और ये सब होता है संक्रमण की वजह से. इसे थनैला बीमारी कहा जाता है. इस बीमारी के होते ही दूध उत्पादन कम हो जाता है. थनैला बीमारी को डेयरी में होने वाला सबसे बड़ा नुकसान माना जाता है.
दूध निकालने से पहले थनों की सफाई ना करना.
दूध निकालने वाले के कपड़े और हाथों के गंदा होने पर.
दूध निकालने वाला अगर बीमार है.
जिस बर्तन में दूध निकाला जा रहा उसका साफ ना होना.
गंदी जगह पर बैठकर पशु का दूध निकालना.
गाय-भैंस के बच्चे को दूध पिलाने के बाद थनों को ना धोना.
पशु के पेट, थन और पूंछ पर चिपकी गंदगी से.
दूध दुहते समय पानी, बर्तन और फर्श की गुणवत्ता को लेकर अलर्ट रहें.
डेयरी में काम करने वाली लेबर के गंदा रहने और उनके गंदे कपड़े बीमारी को बढ़ा देते हैं.
खराब खान-पान और तनाव पशुओं में थनैला से लड़ने की क्षमता को कमजोर करते हैं.
लुवास के वाइस चांसलर (वीसी) के मुताबिक थनैला बीमारी की पहचान दूध से की जा सकती है.
दूध में मौजूद अल्फा1 ग्लाइको प्रोटीन की जांच से थनैला के बारे में वक्त रहते पता लग जाएगा.
इसके लिए दूध के नमूने को स्फेक्ट्रो फोटो मीटर की मदद से जांचा जाता है.
अगर पशु थनैला बीमारी से पीडि़त है तो दूध में मौजूद अल्फा1 ग्लाइको प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाएगी.
थनैला बीमारी की सबसे बड़ी वजह डेयरी मैनेजमेंट है. जब मैनेजमेंट के दौरान पशुओं की देखभाल में कुछ बातों की अनदेखी की जाती है तो दूध देने वाला पशु थनैला बीमारी का शिकार हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि पशु का दूध दुहाने से पहले और बाद में साफ-सफाई से जुड़ी कुछ बातों का ख्याल रखा जाए.
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