Feeding Cost: ‘मीथेन भी कम होगी और दूध उत्पादन भी बढ़ेगा, जरूरत है इस तरह के हरे चारे की’ 

Feeding Cost: ‘मीथेन भी कम होगी और दूध उत्पादन भी बढ़ेगा, जरूरत है इस तरह के हरे चारे की’ 

Feeding Cost in Dairy ज्यादा दूध के लिए अच्छी खुराक तो पशुओं को खि‍लानी ही होगी. इसलिए जरूरी है कि ऐसा चारा तैयार किया जाए जिससे प्रति किलोग्राम चारे में दूध का उत्पादन बढ़े. क्योंकि हमारे यहां आठ करोड़ लोग आजीविका चलाने के लिए डेयरी और पशुपालन से जुड़े हैं. हमारे यहां ये सीधे रोजी-रोटी से जुड़ा हुआ है. 

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Feeding Cost: ‘मीथेन भी कम होगी और दूध उत्पादन भी बढ़ेगा, जरूरत है इस तरह के हरे चारे की’ पशुओं के लिए वरदान है ये हरा चारा

Feeding Cost in Dairy ‘लगातार बीते कई साल से दूध का उत्पादन बढ़ रहा है. अगर हर साल बढ़ने वाले दूध उत्पादन की बात करें तो एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक 4.5 से लेकर पांच फीसद की दर से हर साल दूध उत्पादन बढ़ रहा है. इतना ही नहीं विश्वस्तर पर कुल दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 25 फीसद तक हो गई है. उम्मीद जताई जा रही है कि साल 2047 तक ये आंकड़ा डबल से भी ज्यादा हो सकता है. लेकिन डेयरी में एक बड़ी परेशानी अभी भी है. पशुपालकों को आज भी दूध के ठीक ठाक दाम नहीं मिल पा रहे हैं. लगातार लगात बढ़ने से उनका मुनाफा कम हो गया है. पशुपालन में दूध पर आने वाली लागत का 70 फीसद खर्च आज भी चारे पर होता है. उस खर्च पर कंट्रोल करना पशुपालक के हाथ में है नहीं’. 

ये कहना है इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी डॉ. आरएस सोढ़ी का. डॉ. सोढ़ी के मुताबिक जरूरत है कि डेयरी और पशुपालन से जुड़े आठ करोड़ लोगों की रक्षा की जाए. हालांकि हमारा देश पशुपालकों के साथ खड़ा हुआ है. पशुपालक दूध की लागत कम होने और मुनाफा बढ़ने की उम्मीद लगाए हुए हैं. चारे और दूसरे फीड की महंगाई ने उन्हें परेशान कर दिया है. इसका जल्दी ही साइंटिस्ट को हल निकालना होगा. 

उत्पादन संग खपत बढ़ाने से भी निकलेगा हल 

डॉ. सोढ़ी का कहना है कि मौजूदा वक्त में भारत 24 करोड़ टन दूध का उत्पादन कर रहा है. और उम्मीद है कि 2047 तक देश में करीब 63 करोड़ टन दूध का उत्पादन होने लगेगा. जैसा की उम्मीद है तो ऐसा होने पर ये विश्व दूध उत्पादन का 45 फीसद हिस्सा होगा. और इतना ही नहीं 63 करोड़ टन उत्पादन होने पर 10 करोड़ टन दूध देश में सरप्लस हो जाएगा. वहीं ये भी उम्मीद है कि 2047 तक विश्व व्यापार का दो तिहाई हिस्सा भारत का होगा. लेकिन दूध उत्पादन बढ़ने के साथ ही हमे उसकी खपत और पशुपालक की लागत संग उसके मुनाफे के बारे में भी सोचना होगा.

क्योंकि हर साल अच्छी दर से दूध उत्पादन बढ़ रहा है तो इसकी खपत का बढ़ना भी जरूरी है. खपत बढ़ेगी तो कीमत बढ़ेगी. और रणनीति ये होनी चाहिए कि दूध की कीमतें खाद्य मुद्रास्फीति दर से ज्यादा न बढ़ें. वहीं पशुपालकों के बारे में इस तरफ भी सोचना होगा कि प्रति किलोग्राम चारे में दूध उत्पादन को बढ़ाया जाए. और ये सब मुमकिन होगा अच्छी ब्रीडिंग और चारे में सुधार लाकर. आज पशुपालक अपने दूध के दाम ज्यादा और चारे के दाम कम कराना चाहता है. क्योंकि अगर दूध की लागत 100 रुपये लीटर आ रही है तो उस में 70 रुपये तो सभी तरह के चारे और खुराक पर ही खर्च हो जाते हैं. 

इंपोर्ट करते ही वर्ल्ड लेवल पर बढ़ जाएगी डिमांड

डॉ. सोढ़ी का कहना है कि अमेरिका लगातार अपने डेयरी प्रोडक्ट के लिए दबाव बना रहा है. लेकिन भारत अपने पशुपालक की रक्षा करते हुए डेयरी प्रोडक्ट इंपोर्ट करने से मना कर चुका है. एक तो मामला ये भी है कि वहां पशुओं को मांसाहारी खुराक दी जाती है. वहीं अगर मंजूरी दे दी गई तो इससे देश के डेयरी सेक्टर में अस्थिकरता आ जाएगी. हमारे इंपोर्ट करने से होगा ये कि आज हम 24 करोड टन दूध का उत्पादन कर रहे हैं. अब अगर हमने अपने उत्पादन का 10 फीसद भी इंपोर्ट कर लिया तो वो आंकड़ा होगा 24 टन. जबकि विश्व का कुल दूध कारोबार 100 मीट्रि‍क टन है. ऐसे में हमारे इंपोर्ट करते ही ये आंकड़ा 124 मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगा.   

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