आजकल जो मौसम चल रहा है उसमे हरे चारे की कहीं कोई कमी नहीं होती है. जिधर भी नजर घुमाओं हरा चारा ही नजर आता है. लेकिन एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो इस दौरान पशुओं को बाहर का हरा चारा खिलाने से बचना चाहिए. अगर मुमिकन हो तो पशुओं को बाहर चरने के लिए ना भेजें. अगर बहुत ज्यादा जरूरी हो तब भी कम से कम बाहर का हरा चारा दें. अगर हरा चारा दे भी रहे हैं तो उसके साथ सूखा चारा, दाना और मिनरल्स जरूर दें. ऐसा करने से पशु बीमारी की चपेट में नहीं आएगा.
लेकिन एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि अगर बरसात का मौसम शुरू होने से पहले हम कुछ जरूरी उपाय अपना लें तो हमारे पशु बरसात के दिनों में भी भरपेट हरा चारा खा सकते हैं. इतना ही नहीं इसी उपाय के चलते बरसात के दिनों में होने वाले हरे चारे को हम आगे चलकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
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सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने किसान तक को बताया कि हरा चारा स्टोर करने के लिए हमेशा पतले तने वाली फसल का चुनाव करें. क्योंकि पतले तने वाली फसल जल्दी सूखेगी. कई बार ज्यादा लम्बे वक्त तक सुखाने के चलते भी चारे में फंगस की शिकायत आने लगती है.जिस चारे को स्टोर करना है उसे पकने से कुछ दिन पहले ही काट लें. इसके बाद उसे धूप में सुखाने रख दें. लेकिन चारे को सुखाने के लिए कभी भी उसे जमीन पर डालकर न सुखाएं. चारा सुखाने के लिए जमीन से कुछ ऊंचाई पर जाली वगैरह रखकर उसके ऊपर चारे को डाल दें.
इसे लटका कर भी सुखाया जा सकता है. क्योंकि जमीन पर डालने से चारे पर मिट्टी लगने का खतरा रहेगा जो फंगस आदि की वजह बन सकती है. जब चारे में 15 से 18 फीसद के आसपास नमी रह जाए, यानि चारे का तना टूटने लगे तो उसे सूखी जगह पर रख दें. इस बात का ख्याल रहे कि अगर चारे में नमी ज्यादा रह गई तो उसमे फंगस आदि लग जाएंगे और चारा खराब हो जाएगा. इतना ही नहीं इस खराब चारे को गलती से भी पशु ने खा लिया तो वो बीमार हो जाएगा.
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डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि बरसीम, ओट और चरी पतले तने वाली चारे की फ सल हैं. इन्हें आसानी से सुखाकर स्टोर किया जा सकता है. लेकिन किसी भी चारे की फसल को स्टोर करते वक्त इस बात का भी खास ख्याल रखें कि स्टोर किए जा रहे चारे की मात्रा उतनी ही हो कि चारे की आने वाली नई फसल तक स्टोर किया गया चारा खत्म हो जाए.
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