लम्बे-लम्बे लटकते कान, नाक पर बालों का गुच्छा, थाई के दोनों तरफ घने बाल, और इससे भी बड़ी बात ये कि लम्बाई के मामले में बकरियों की कोई ऐसी दूसरी नस्ल नहीं है जो इस खास नस्ल का मुकाबला कर सके. यही वजह है कि देश के साथ-साथ विदेशों में भी इस नस्ल की डिमांड रहती है. कई दूसरे ऐसे देश हैं जो भारत से इस नस्ल के बकरे-बकरियों की डिमांड करते हैं. इस नस्ल को ले जाने के बाद वो इसकी मदद से अपने यहां बकरियों का नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाते हैं.
लम्बी कद-काठी के चलते ही जमनापारी नस्ल ने विदेशों में भी पहचान बना ली है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट की मानें तो जमनापारी नस्ल यूपी के इटावा शहर की है. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन का सहारा लेकर जमनापारी नस्ल की संख्या बढ़ाई जा रही है. चार-पांच साल में चार हजार के करीब जमनापारी नस्ल के बकरे-बकरी किसानों में वितरित किए जा चुके हैं.
सीआईआरजी से जुड़े गोट एक्सपर्ट की मानें तो जमनापरी नस्ल की बकरी रोजाना चार से पांच लीटर तक दूध देती है. इसका दुग्ध काल 175 से 200 दिन का होता है. एक दुग्ध काल में 500 लीटर तक दूध देती है. इस नस्ल में दो बच्चे देने की दर 50 फीसद तक है. शारीरिक बनावट और सफेद रंग का होने के चलते इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है. इसीलिए ईद पर भी इनकी खासी डिमांड रहती है.
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