पशुओं की जानलेवा बीमारी खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) को लेकर भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली ने एक बड़ी घोषणा की है. हाल ही में संस्थान में रिसर्च एडवाइजरी काउंसिल की एक बैठक बुलाई गई थी. बैठक के दौरान ही आईवीआरआई के साइंटिस्ट ने बताया कि दूध उत्पादन और उसकी क्वालिटी को प्रभावित करने वाली जानलेवा बीमारी एफएमडी को कंट्रोल करना जरूरी है. इसके लिए इस बीमारी पर रिसर्च करना जरूरी है. जिससे जल्द से जल्द एफएमडी पर कंट्रोल पाया जा सके. इसके लिए आईवीआरआई ने दूसरे रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर रिसर्च शुरू करने की बात भी कही है.
वहीं बैठक के दौरान पशुओं की दूसरी बीमारियों पर भी चर्चा की गई. साथ ही पोल्ट्री में फैलने वाली बीमारियों पर कंट्रोल पाने की भी चर्चा हुई. जिससे विदेशी प्रोडक्ट पर निर्भरता कम हो सके. इस अहम बैठक के दौरान डॉ केएम बुजरबरुआ, पूर्व कुलपति असम कृषि विश्वविद्यालय और पूर्व उपमहानिदेशक (पशु विज्ञान) भी मौजूद थे.
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बैठक को संबोधित करते हुए पीएमई प्रकोष्ठ के प्रभारी डॉ जी साई कुमार ने कहा कि देश के विभिन्न पशु चिकित्सा विशेषज्ञ संस्थान के शोध का आईवीआरआई में आंकलन करेंगे, जिससे संस्थान के शोध को नई दिशा मिलेगी और नए सुझाव मिलेंगे. आईवीआरआई के डायरेक्टर डॉ त्रिवेणी दत्त ने बताया कि साल 2023-24 के सत्र में 368 नए छात्रों ने संस्थान में प्रवेश लिया. वहीं बीवीएससी एण्ड एएच की सीटो को बढ़ाया गया है. डा. दत्त ने जानकारी देते हुए बताया कि संस्थान जल्द ही केन्द्रीय भैंस अनुसधांन संस्थान और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर हिसार में एजुकेशन हब विकसित करने जा रहा है.
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डॉ. एस.के. सिंह, संयुक्त निदेशक (शोध) ने संस्थान में हो रहीं रिसर्च के बारे में बताया कि संस्थान ने पिछले चार साल में पीपीआर गोट पोक्स कम्बाईंड वैक्सीन, एफएमडी मार्कर वैक्सीन,पीपीआर मार्कर वैक्सीन और डक प्लेग वैक्सीन विकसित की हैं. वहीं चार बीमारियों के नैदानिक भी बनाए गए हैं. डॉ सिंह ने कहा कि रिसर्च के बाद तैयार की गईं तकनीक को कमर्शियल रूप से प्राइवेट कंपनियों को ट्रांसफर भी किया गया. इस सब के चलते संस्थान को करीब दो करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिला है. वहीं संस्थान ने बीते साल 10 एमओयू भी साइन किए हैं.
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