घरों तक ताजा दूध पहुंचाना, दूध के दाम कम करना और कार्बन उत्सर्जन को कंट्रोल करना आज डेयरी सेक्टर के सामने बड़ी चुनौती है. डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो दूध बिक्री पर सबसे ज्यादा लागत ट्रांसपोर्टेशन पर आती है. पशुपालक से मिल्क सेंटर पर दूध देता है, सेंटर से प्लांट पर आता है. फिर प्लांट से डीलर और डीलर से रिटेलर और मिल्क बूथ तक जाता है. लेकिन इस सब के बीच ये बहुत जरूरी है कि दूध ग्राहक के घर तक ताजा पहुंचे. ये सिर्फ गुजरात ही नहीं देशभर की चुनौती है.
इसी चुनौती से निपटते हुए नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) और उसकी सहायक कंपनी माही मिल्क प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एमपीओ) ने एक खास तरीका निकाला है. इसकी शुरुआत गुजरात से की गई है. एनडीडीबी के चैयरमेन डॉ. मीनेश शाह ने झंडी दिखाकर इसकी शुरुआत की. योजना के तहत सूरत में दूध की सप्लाई रो-रो फेरी सर्विस की मदद से की जाएगी.
डॉ. मीनेश शाह ने गुजरात में रो-रो फेरी सर्विस को झंडी दिखाते हुए कहा कि गुजरात में भावनगर से दूध के टैंकर सूरत जाते हैं. इसके लिए उन्हें करीब 360 किमी की दूरी तय करनी होती है. अब इस पर आने वाले खर्चे का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. दूसरा ये कि 360 किमी की दूरी तय करने में अच्छा खासा वक्त भी लगता है. दूध सप्लाई में आने वाली इन सभी परेशानियों का हल निकालते हुए एमपीओ ने भावनगर से सूरत तक के लिए रो-रो फेरी सर्विस की शुरुआत की है. दूध के टैंकर समुद्र के रास्ते शिप से सूरत जाएंगे. ऐसा होने पर पूरे आठ घंटे का सफर कम हो जाएगा. वहीं 360 किमी की दूरी सिर्फ 90 किमी की रह जाएगी.
डॉ. मीनेश ने रो-रो फेरी के फायदे गिनाते हुए कहा कि इस योजना से एक सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि हवा में से कार्बन की मात्रा कम हो जाएगी. एनडीडीबी इसके लिए लगातार कोशिश कर रही है. हम डेयरी में गोबर को ईंधन के रूप में बदल रहे हैं. फिर वो चाहें खाना पकाने वाली बायो गैस हो या फिर गोबर से बनने वाला वाहनों का ईंधन.
वाराणसी डेयरी प्लांट में बने बायोगैस प्लांट में हर रोज 100 मीट्रिक टन खाद की प्रोसेसिंग होती है. इसका इस्तेमाल प्लांट में हीट के रूप में, बिजली और बायो गैस के लिए किया जाता है. बनास डेयरी के बायो गैस प्लांट में वाहनों का ईंधन संपीड़ित बायोगैस (सीबीजी) का उत्पादन हो रहा है.
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