खासतौर पर दुधारू पशुओं के लिए मई-जून का मौसम बहुत नुकसान पहुंचाने वाला होता है. लू और चढ़ते तापमान के चलते पशु हीट स्ट्रैस की चपेट में आ जाते हैं. तेज गर्म हवाओं और 48 डिग्री तापमान के चलते पशु डिहाइड्रेशन (पानी की कमी) का शिकार होने लगते हैं. भेड़-बकरी जैसे छोटे पशु भी इसकी चपेट में आ जाते हैं. उनके भी दूध उत्पादन और ग्रोथ पर इसका बड़ा असर पड़ता है. इस सब के चलते पशुपालक को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. ये पशुपाकों के लिए दोहरे नुकसान जैसा होता है.
एक ओर तो पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है, वहीं दूसरी ओर पशुओं के बीमार पड़ने पर इलाज में पैसा खर्च होने लगता है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो इस मौसम में पानी की कमी के चलते पशुओं को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है. अगर गर्मियों के दौरान पशुओं की खुराक में हरे चारे की मात्रा भरपूर रखी जाए तो एक किलो हरे चारे से तीन से चार लीटर तक पानी की कमी पूरी हो जाती है.
जब पशुओं में पानी की कमी हो जाती है तो कई तरह के लक्षण से इसे पहचाना जा सकता है. जैसे पशुओं को भूख नहीं लगती है. सुस्ती और कमजोर हो जाना. पेशाव गाढ़ा होना, वजन कम होना, आंखें सूख जाती हैं, चमड़ी सूखी और खुरदरी हो जाती है और पशुओं का दूध उत्पादन भी कम हो जाता है. और सबसे बड़ी पहचान ये है कि जब हम पशु की चमढ़ी को उंगलियों से पकड़कर ऊपर उठाते हैं तो वो थोड़ी देर से अपनी जगह पर वापस आती है.
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