पशुपालन का कारोबार करने वाले लोग हमेशा अपने पशुओं ना सिर्फ अच्छा दूध पाना चाहते हैं बल्कि उनके स्वास्थ्य भी अच्छा चाहते हैं. पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए उनके रखरखाव और खान-पान का खास ध्यान रखने की सलाह दी जाती है. पशुओं को रोजाना हरा चारा खिलाने से उनका स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है और दुधारू पशुओं का दूध भी बढ़ता है. कई बार पशुपालकों के सामने हरे चारे की समस्या होती है. आज आपको ऐसी फसलों के बारे में बताते हैं जो पशुओं में इस कमी को दूर करेंगी.
आमतौर पर जानवरों को खिलाने के लिए नेपियर घास और दूब मैदानों में चरने के लिए पशुओं को मिल जाती है लेकिन साल भर ये चारे उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. कई बार मैदानों में मिलने वाली घास पशुओं को नुकसान भी पहुंचाते हैं. आज आपको ऐसी फसलों के बारे में बताते हैं जिनकी खेती खासतौर पर जानवरों के लिए की जाती है. हम बात कर रहे हैं बरसीम, ग्वार, लोबिया, मक्का और बाजरे की. ये सभी फसलें जानवरों के चारे की आपूर्ति करते हैं.
बरसीम और लोबिया की खेती अक्टूबर से जनवरी महीने तक की जाती है. बुवाई के 40-45 दिन बाद ही इनकी कटाई कर जानवरों को खिला सकते हैं. बाजरे की खेती आप जून-जुलाई के महीने में कर सकते हैं. मक्के की बात करें तो इसे साल के तीनों सीजन में उगा सकते हैं. इन फसलों के पत्तों को हरे चारे के रूप में किया जाता है. आप मक्का और बाजरे से साइलेज भी बना सकते हैं और इनके दाने को अनाज के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है. गर्मी के दिनों में पानी की व्यवस्था वाले क्षेत्रों में चरी की खेती भी की जाती है. चरी की फसल को भी 10-15 दिनों के अंतराल में कई बार काटा जा सकता है.
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गाय-भैंस को खिलाने के लिए भूसा और अनाजों के अलावा हरा चारा हर रोज देने की सलाह दी जाती है. हरा चारा अच्छी तरह से पचता है इससे दुधारू पशुओं में दूध बढ़ता है. कहा जाता है कि हरा चारा खिलाने से पशुओं में चंचलता भी बनी रहती है. पशुओं का रक्त संचार बेहतर होता है. इन सब के साथ गाय-भैंस में गर्भ धारण क्षमता भी बढ़ती है.
हमने हरे चारे की खेती और इसके फायदे तो जान लिया है. लेकिन ये जानना भी बहुत जरूरी है कि इसे खिलाने का तरीका क्या है? ध्यान रहे हरा चारा पशुओं को सीधा ना दें इसे भूसे के साथ मिलाकर देना फायदेमंद होता है. एक पशु को एक दिन में 15 किलो हरा चारा पर्याप्त होता है.
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