भैंस पशुपालक का भविष्य है. गांव में एक परचूनी की दुकान चलाने से अच्छा है कि एक भैंस पाल ली जाए. एक भैंस से रोजाना जितनी इनकम होगी उतनी दुकान से भी नहीं होगी. ऐसे ही भैंसों में मुर्रा नस्ल की भैंस को ब्लैक गोल्ड नहीं कहा जाता है. सिर्फ मुर्रा ही नहीं नीली रावी भैंस भी ब्लैक गोल्ड है. ये कहना है सेंट्रल बफैलो रिसर्च इंस्टीट्यूट, हिसार, हरियाणा के पूर्व डायरेक्टर डीके दत्ता का. सात मार्च को डेयरी कांफ्रेंस में चर्चा के दौरान उन्होंने ये बात कही.
किसान तक से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने ये भी बताया कि भैंस पशुपालक का चलता-फिरता एटीएम है. आज सड़कों पर और खेतों में गाय छुट्टा घूमती हुई दिख जाएगी, लेकिन तलाशने पर भी एक भी भैंस आपको छुट्टा घूमती हुई नहीं मिलेगी. गौरतलब रहे इंडियन डेयरी एसोसिएशन की ओर से पटना, बिहार में 51वीं डेयरी कांफ्रेंस का आयोजन किया जा रहा है.
टीके दत्ता का कहना है कि पशुपालन के लिए भैंस को गाय से बेहतर बताने के कई कारण हैं. जैसे भैंस में मादा और नर दोनों ही काम के हैं. मादा हो तो खूब दूध देती है. नर हो तो एक-डेढ़ साल का बेच दो अच्छे पैसे मिलते हैं. नर को ब्रीडर बनाओ तो वो भी मुनाफा कमाता है. इतना ही नहीं गाय के मुकाबले भैंस का दूध महंगा बिकता है. भैंस दूध देना बंद कर दे तब भी 35 से 40 हजार रुपये की बिक जाती है. इतना ही नहीं जब भी पैंसों की जरूरत हो तो भैंस को आप बड़ी ही आसानी से बेच सकते हैं. जबकि गाय के साथ ऐसा नहीं है. आज सेक्स सॉर्टेड सीमन का इस्तेमाल कर गाय से नर का जन्म रोका जा रहा है. सिर्फ दुधारू गाय ही बिकती है. गाय दूध देना बंद कर दे तो कोई खरीदार नहीं है. खेतों और सड़कों पर गाय छुट्टा घूम रही हैं.
टीके दत्ता का कहना है कि आज देशभर में मुर्रा नस्ल की भैंस बहुत पसंद की जा रही है. मुर्रा भैंस को ब्लैक गोल्ड भी कहा जाता है. लेकिन एक और दूसरी नस्ल नीली रावी भी है जो किसी तरह मुर्रा से कम नहीं है. लेकिन ये पूरी तरह से काली नहीं है तो पशुपालक इसमे रूचि नहीं दिखाते हैं. जबकि ज्यादा दूध देने के मामले में ये अच्छी भैंस है. आपको बता दें कि पंजाब में गाय-भैंस की होने वाली प्रतियोगिताओं में मुर्रा के अलावा नीली रावी ही शामिल होती है. इसके अलावा कोई नस्ल वहां नहीं आती है. इसलिए नीली रावी के पालन पर भी जोर देना चाहिए.
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