बारिश के साथ ही शुरू हो जाती है पशुओं की देखभाल. एक पशुपालक के लिए बहुत जरूरी हो जाता है कि वो बरसात के दिनों में पशुओं को कई तरह की संक्रमित जानलेवा बीमारियों से बचाकर रखे. बरसात के दिनों में पशुओं को संक्रमण होते ही सबसे पहले दूध का उत्पादन कम होता है और फिर जरा सी लापरवाही के चलते पशु की जान पर भी बन जाती है. ऐसी ही एक बीमारी है खुरपका-मुंहपका (एफएमडी). हाल ही में केन्द्र सरकार के एक संस्थान ने जुलाई-अगस्त के लिए पशुओं की बीमारी से संबंधित एक अलर्ट जारी किया है.
अलर्ट के मुताबिक 22 राज्यों के 183 शहरों के पशुओं पर एफएमडी का खतरा है. क्योंकि ये दोनों ही महीने बरसात के हैं तो एफएमडी का खतरा और बढ़ जाता है. बीमारियों का सबसे ज्यादा असर झारखंड, केरल और कर्नाटक में देखने को मिल सकता है. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि पशुपालकों को चाहिए कि पशुओं को सभी जरूरी टीके लगवा लें. साथ ही पशुओं को बरसात के संक्रमण से बचाने के लिए उनके शेड के आसपास साफ-सफाई के सभी इंतजाम पूरे कर लें.
जानकारों की मानें तो जुलाई में एफएमडी बीमारी देश के 22 राज्यों में अपना असर दिखा सकती है. पशुओं की बीमारी के संबंध में अलर्ट जारी करने वाली संस्था निविदा के मुताबिक 22 राज्यों के 87 शहर में पशु इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं. अगर अगस्त की बात करें तो करीब 96 शहर इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं. अगस्त में ये आंकड़ा और ज्यादा बड़ा दिखाई दे रहा है. अगर जुलाई की बात करें तो एफएमडी का सबसे ज्यादा खतरा झारखंड, कर्नाटक और केरल में है. झारखंड के 20, कर्नाटक के 15 और केरल के 14 शहर इसकी चपेट में आ सकते हैं. वहीं अगस्त में झारखंड के 24 शहर इसकी चपेट में आ सकते हैं. कर्नाटक के 19 और केरल के 13 शहर में एफएमडी पशुओं पर अपना असर दिखा सकती है.
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एनीमल एक्सपर्ट विजेन्द्र मलिक ने किसान तक को बताया कि एफएमडी पीड़ित किसी भी पशु जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी और सूअरों के लक्षण ये हैं कि उन्हें 104 से 106 एफ तक तेज बुखार आएगा. भूख कम हो जाएगी. पशु सुस्त रहने लगता है. मुंह से बहुत ज्यादा लार टपकना शुरू हो जाती है. मुंह में फफोले हो जाते हैं. खासतौर पर जीभ और मसूड़ों पर फफोले बहुत ज्यादा हो जाते हैं. पशु के पैर में खुर के बीच घाव हो जाते हैं, जो अल्सर होता है. गाभिन पशु का गर्भपात हो जाता है. थन में सूजन और पशु में बांझपन की बीमारी आ जाती है.
विजेन्द्र मलिक ने बताया कि दूषित चारा और दूषित पानी पीने से पशुओं में एफएमडी रोग जल्दी फैलता है. बरसात के दौरान खासतौर पर पशु खुले में चरने के दौरान दूषित चारा-पानी खा और पी लेते हैं. खुले में पड़ी कुछ सड़ी-गली चीजें खाने से भी होता है. फार्म पर नए आने वाले पशु से भी ये बीमारी लग जाती है. पहले से ही एफएमडी से पीड़ित पशु के साथ रहने से भी हो जाती है.
विजेन्द्र का कहना है कि पशुओं में एफएमडी की रोकथाम करना बहुत आसान है. इसमे कोई पैसा भी खर्च नहीं होता है. सबसे पहले तो अपने पशु का रजिस्ट्रेशन कराएं. उसके कान में ईयर टैग डलवाएं. किसी भी पशु स्वास्य्ले केन्द्र पर साल में दो बार फ्री लगने वाले एफएमडी के टीके लगवाएं. टीका लगवाने के बाद इस बात का खास ख्याल रखें कि टीका लगने पर 10 से 15 दिन में पशु में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है. इसलिए तब तक पशु का खास ख्याल रखें. बरसात के दौरान पशु के बैठने और खड़े होने की जगह को साफ और सूखा रखें.
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एनीमल एक्सपर्ट बताते हैं कि एफएमडी का कोई इलाज तो नहीं है, लेकिन कुछ जरूरी उपाय जरूर अपनाए जा सकते हैं. जैसे पीड़ित पशु को बाकी सभी पशुओं से अलग रखें. मुंह के घावों को पोटेशियम परमैंगनेट सॉल्यूशन से धोएं. इसके अलावा बोरिक एसिड और ग्लिसरीन का पेस्ट बनाकर उससे पशु के मुंह की सफाई करें. खुर के घावों को पोटेशियम सॉल्यूगशन या बेकिंग सोडा से धोएं. कोई एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं.
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