जनवरी में कड़ाके की सर्दी के बाद फरवरी का मौसम बड़ा ही सामान्य सा होता है. ना तो सर्दी महसूस होती है और ना ही गर्मी का एहसास होता है. मौसम भी बड़ी जल्दीं-जल्दी बदलता है. दिन-रात के मौसम में बहुत ज्यादा फर्क दिखाई पड़ता है. ऐसे में इंसानों के साथ ही पशुओं को भी खास देखभाल की जरूरत होती है. खासतौर पर गाभिन, छोटे बच्चे और बीमार पशुओं को ज्यादा देखभाल चाहिए होती है. बड़ी बात ये है कि इस दौरान बाजार में पशुओं की खरीद-फरोख्त भी खूब होती है.
ऐसे में अगर आप कोई पशु बेचना चाहते हैं और वो बीमार है तो उसके सही दाम मिलने की उम्मीद कम ही होती है. बीमार होने पर दूध कम हो जाता है. लेकिन वक्त रहते कुछ ऐहतियाती कदम उठाकर इस तरह की परेशानी और आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है, साथ ही पशु भी हेल्दी रहेंगे.
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पशु और उसे रखने वाले बाड़े की रोजाना सफाई करें.
पशु को दिन में धूप तो रात को गर्म जगह पर रखें.
जैसे ही पशु हीट में आए तो उसे उत्तम नस्ल के सांड या एआई से गाभिन कराएं.
पशु तीन महीने का गाभिन हो तो पशु चिकित्सक से उसकी जांच कराएं.
बच्चा देने वाले पशु को दूसरे पशुओं से अलग रखें.
डॉक्टर की सलाह पर गाय-भैंस, भेड़-बकरी के बच्चों को पेट के कीड़ों की दवाई जरूर दें.
पशुओं को थनेला रोग से बचाने के लिए पूरा दूध निकालें.
भेड़ और बकरियों को पीपीआर का टीका लगवाएं.
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बरसीम चारे की सिंचाई 12 से 14 या फिर 18 से 20 दिन में कर दें.
बरसीम और जई फसल की कटाई सही अवस्था पर करते रहें.
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