डेयरी फार्मिंग के लिए खतरा है भारी बारिश! पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए मानें एक्सपर्ट की राय

डेयरी फार्मिंग के लिए खतरा है भारी बारिश! पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए मानें एक्सपर्ट की राय

मॉनसून सीजन में, डेयरी पशुओं को अन्य मौसमों की तुलना में विभिन्न वायरस, बैक्टीरिया और संक्रमण के संपर्क में आने का दोगुना जोखिम होता है. हवा में बढ़ी हुई नमी हानिकारक सूक्ष्मजीवों के पनपने के लिए बेहतर वातावरण बनाती है, जिससे कई बीमारियां फैलती हैं.

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डेयरी फार्मिंग के लिए खतरा है भारी बारिश! पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए मानें एक्सपर्ट की रायमॉनसून में पशुओं का ऐसे रखें ध्यान

भारत में डेयरी फार्मिंग को मॉनसून के मौसम में अनोखी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जिससे पशुओं का स्वास्थ्य और उत्पादकता दोनों प्रभावित होती है. बारिश के दौरान बढ़ी हुई नमी और पर्यावरण में बदलाव के कारण ऐसी परिस्थितियां पैदा होती हैं, जो डेयरी पशुओं की सेहत और खेती के कामों की दक्षता को काफी हद तक प्रभावित कर सकती हैं. इन समस्याओं का समाधान किसानों को मिल सके इस कड़ी में गोदरेज जर्सी के सीईओ भूपेंद्र सूरी ने बरसात के मौसम में डेयरी किसानों को कुछ जरूरी उपाय बताए हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि मॉनसून के मौसम में पशुओं और पशुपालकों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उसका समाधान क्या है.

मॉनसून में बीमारियों का बढ़ना

गोदरेज जर्सी के सीईओ भूपेंद्र सूरी का कहना है कि मॉनसून सीजन में, डेयरी पशुओं को अन्य मौसमों की तुलना में विभिन्न वायरस, बैक्टीरिया और संक्रमण के संपर्क में आने का दोगुना जोखिम होता है. हवा में बढ़ी हुई नमी हानिकारक सूक्ष्मजीवों के पनपने के लिए बेहतर वातावरण बनाती है, जिससे कई बीमारियां फैलती हैं. खराब जल निकासी और छतों के टपकने के कारण डेयरी फार्म्स में जलभराव की समस्या देखी जाती है, जिससे खराब वातावरण बनता है और कई पानी पे पनपने वाली बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. अन्य मौसम संबंधी स्थितियों के साथ-साथ खुरपका और मुंहपका रोग, रक्तस्रावी सेप्टीसीमिया और एंथ्रेक्स जैसी बीमारियों से भी खतरा बढ़ जाता है.

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उत्पादकता में कमी

  • भारी बारिश के कारण डेयरी फार्मिंग की उत्पादकता आमतौर पर 10-15% कम हो जाती है.
  • उत्पादकता में इस कमी का मतलब है कि प्रति पशु प्रति दिन 1-3 लीटर दूध का नुकसान होना. 
  • अस्वास्थ्यकर स्थितियों के कारण मैस्टाइटिस (स्तनदाह) की दिक्कतें पैदा करने वाले जीवों का प्रकोप बढ़ जाता है, जो दूध उत्पादन को प्रभावित करता है.
  • इससे डेयरी उद्योग को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचता है. राष्ट्रीय स्तर पर, इस समस्या से प्रति वर्ष 12,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है.

बारिश में चारे की कमी 

भूपेंद्र सूरी बताते हैं कि मॉनसून के दौरान अत्यधिक नमी से चारे में फफूंदी लग जाती है, जिसे अगर मवेशियों ने खा लिया, तो यह उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. मॉनसून के दौरान उपलब्ध चारा हरा-भरा तो होता ही है, साथ ही इसमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है. इस प्रकार का चारा खिलाने से कभी-कभी मवेशियों का पेट खराब हो सकता है. इससे पशुओं के चारे की मात्रा और चरागाहों की संख्या में कमी आती है, जिससे पशुओं खाने की समस्याएं और बढ़ जाती हैं.

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डेयरी किसानों के लिए उपाय

बारिश के मौसम में नियमित रूप से मवेशियों के शेड को अच्छी तरह से साफ और कीटों को हटा देना चाहिए.
कचरे और गोबर को सही जगह पर फेंकना चाहिए. इसके लिए वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन किए गए गड्ढों का उपयोग करें. स्वच्छता सुनिश्चित करने के साथ ही दूध उत्पादन के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाएं और उनका पालन करें. भूपेन्द्र सूरी ने कहा कि संक्रामक एजेंट ले जाने वाले बाहरी परजीवियों को नियंत्रित करने के लिए फॉगिंग और कीटाणुशोधन का उपयोग करें.

संतुलित आहार

  • कम चराई की समस्या की भरपाई के लिए मवेशियों के आहार में अतिरिक्त पोषक तत्वों को शामिल करें.
  • पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए संतुलित आहार सुनिश्चित करें.
  • कन्टेंनिमेशन को रोकने के लिए स्वच्छ, ताजे पेयजल की निरंतर आपूर्ति सुविधा उपलब्ध करें.
  • दूषित चारा से बचने के लिए भारी वर्षा और जलभराव वाले क्षेत्रों में चराई के लिए पशुओं को कम से कम ले जाएं.
  • साफ पानी की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करके पशुओं को आवश्यकता के हिसाब से पानी दें.

बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण

  • संक्रामक रोगों के खिलाफ मॉनसून से पहले पशुओं का टीकाकरण करें.
  • हेमरेजिक सेप्टिसीमिया (एचएस) और खुरपका और मुंहपका रोग (एफएमडी) जैसी प्रमुख बीमारियों पर ध्यान दें.
  • टीकाकरण का उचित रिकॉर्ड बनाए रखें और बताए गए बूस्टर शेड्यूल का पालन करें.

शेड प्रबंधन है जरूरी

  • पशु शेड में सख्ती से सफाई बनाए रखें.
  • बचे हुए चारे, गोबर और गंदगी को नियमित रूप से साफ करते रहें.
  • शेड में पानी जमा ना हो इसके लिए उचित जल निकासी सुनिश्चित करें.
  • शेड को सूखा और हवादार रखने का प्रयास करें, इसके लिए जरूरी चीजों को अपनाएं.

रोग की रोकथाम का तरीका

  • मॉनसून से संबंधित आम बीमारियों, खासकर मैस्टाइटिस के लक्षणों के प्रति सतर्क रहें.
  • जीवाणु संक्रमण के खिलाफ निवारक उपाय लागू करें.
  • मॉनसून सीजन में पशुओं का नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएं.
  • मवेशियों के बुनियादी स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण है.

पशुओं को दें सही आहार

  • खराब होने से बचाने के लिए चारे को सूखे, ऊंचे स्थानों पर स्टोर करें ताकि चारा गीला ना हो.
  • भारी बारिश के दौरान ताज़ी घास के विकल्प के रूप में सिलेज या घास देने का सोचें.
  • चारे की गुणवत्ता की नियमित निगरानी करें और किसी भी फफूंदयुक्त या दूषित चारे को फेंक दें.

इन चुनौतियों का समाधान करके और निवारक उपायों को लागू करके, डेयरी किसान बारिश से जुड़े जोखिमों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं. अपने पशुधन के स्वास्थ्य और उत्पादकता को सुनिश्चित कर सकते हैं और सस्टेनेबल डेयरी फार्मिंग प्रैक्टिस को अपना सकते हैं.

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